________________ 70 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग आदि देखकर पीछे लौट कर नगर में आ गया। अपने आँखों से देखी हुई घटना नगर निवासियों को कहने लगा / परन्तु कोई भी व्यक्ति इस असंभब बात को मानने के लिये तैयार नहीं था। तब राजा अत्यन्त उदास हो गया। श्रीदत्त को श ली की आज्ञाः इसके बाद मन्त्री राज सभा में आया और राजा तथा प्रजा जन के आगे राजा और उसने जंगल में जो कुछ देखा था, उस विषय को लेकर एक श्लोक बनाकर बोला, जिसका तात्पर्य है कि प्रत्यक्ष देखने पर भी असम्भव बात किसी को कहनी न चाहिये जैसे यदि कहीं बानर को नृत्य गीत करते देखा हो तथा जल में पत्थर को तैरते देखा भी हो तो किसी से यह न कहे कि मैंने ऐसा होते देखा है। ऐसा श्री दत्त से कह कर राजा क्रोध से लाल नेत्र करके श्री दत्त को शुली पर चढ़ाने के लिये अाज्ञा दी / कहा है। _ 'कहां राजा हरिश्चन्द और कहां उनको चाण्डालदास को बनना, कहाँ पार्थिव अर्जुन और कहां उनका राजा विराटे के घर में नट के समान नृत्य करना, कहां राजा रामचन्द्र और कहां उनका बनवास ? सच है इस संसार में कर्म के अनुसार के 'असंभाव्यं न वक्तव्यं प्रत्यक्षं यदि दृश्यते / यथा वानर गीतानि तथा तु तरिता शिला' ॥४२१शास.. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Guri-Aaradhak Trust