________________ * 68 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग श्री दत्त ने उत्तर दिया कि-"मैं कुछ नहीं जानता हूँ कि वह कहां गई है।" ___ तब वे दासियां कहने लगी कि रे दुष्ट ! पापिष्ठ ! तुम। प्रत्यक्ष ही झूठ क्यों बोल रहे हो ? - इसके बाद रुपवती राजा के पास जाकर कहने लगी कि "हे स्वामिन् / मैं एक ठग द्वारा ठगी गई हूँ; "वह धूर्त भी इसी नगर में रहता है" श्रीदत्त को कैद करना___राजा ने पूछा-'किस से ठगी गई हो ?' तब रुपवती ने उत्तर दिया कि 'दुरात्मा श्री दत्त ने सुवर्णरेखा का अपहरण कर लिया है / ' इस पर राजा ने श्रीदत्त को बुलाकर पूछा। तब श्री दत्त विचार ने लगा कि "यदि मैं कहूंगा कि वानर स्वर्ण रेखा को ले गया तो कोई नहीं विश्वास करेंगे।" इस प्रकार सोचकर वह मौन ही रह गया / तब राजा ने आदेश दिया कि इसे कारागार में लेजाश्रो / तब दण्ड पाश धारण करने वालों ने ऐसा ही किया। उसकी दुकान में सील देकर राजा ने उसकी कन्या को अपने अन्तःपुर में रख लिया। क्योंकि:-- "गंगा नहाये न काक पवित्र, जुआरी न सत्य कभी कहिं बोले / सर्प क्षमा करता न किसी पर, स्त्री.न बिना कुछ काम के बोले // धीरज धारण हो ही जड़ाकेन, भूपति मित्र न शाश्वत भोले / ज्ञान कथा न सराबी को भाती है, ये सब भग्य समाज के रोड़े॥" P.P.Ac, Ginrassfasuri M.s. Jun Gun Aaradhak Trust