________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित पिता की पूर्व कथा तब मुनिने उत्तर दिया कि मस्तक में बाण लगने पर तुम्हारा पिता सोम श्रेष्ठी दूरस्थित मन्दिरपुर नाम के नगर में बाण से घायल होकर वहां सोम श्री के ध्यान से प्राण त्याग करने के कारण व्यन्तर जाति में प्रत हुआ। क्योंकि "रज्जुग्रहण से, विष भक्षण से, जल प्रवेश, तथा अग्नि प्रवेश से शरीर त्याग करने वाला तथा पर्वत के शिखर पर से गिर करके मरने वाला, शुद्ध भाववाला व्यक्ति भी व्यन्तर(प्रत)बन जाता है / " व्यन्तर ने तुमको उस सोमश्रीमाता तथा पुत्री से युक्त देखकर उस व्यन्तर ने वानर का रूप धारण करके तुमको ये सब बातें कही हैं। वह व्यन्तर पूर्व स्नेह के कारण इस सोम श्री को लेकर जायगा। मुनिके ऐसा कहने पर वह व्यन्तर अकस्मात् कहीं से शीघ्र आकर सोम श्री को उठाकर कहीं चला गया। इसके बाद श्रीदत्त मुनि को प्रणाम करके अपने मन में अत्यन्त आश्चर्य करता हुआ, कन्या सहित नगर में आकर अपने घर में स्थित हो गया। - इधर रुपवती वेश्या ने सखियों से पूछा कि 'स्वर्णरेखा - कहां है ?' तब सखियोंने मधुर वचनसे उत्तर दिया- 'श्री दत्त'ने सोमश्री ___ से कहा कि मैं तुमको पचास दीनार दूगा ऐसा कहकर .. उसको लेकर बन में गया था। इस पर रुपवती ने अपनी दासियों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust