________________ विक्रम चरित्र-द्वितीय भाग सोमश्री का नाम परिवर्तन अपने शरीर की क्रान्ति से सुवण को जीतने वाली उसको देखकर उस नगर नायिका ने सोमश्री का 'सुवर्णरेखा' नाम रखा। इसके बाद एक दिन नत्य करती हुई उस सुवर्णरेखा को देख कर राजा ने उसको अपने समीप में चामर हारिणी बनाया ! ___हे श्रीदत्त ! वही यह तुम्हारी माता है / इसने लोभ तथा लज्जा से अपना स्वरूप तुम्हारे पास प्रकट नहीं किया क्योंकि:. "वैश्यायें लोभ की राजधानी हैं, वहां से जो कोई प्रस्थान करता है, वह समस्त संसार को जीत लेता है। जिन वेश्याओं के हृदय में कुछ और रहता है, वाणी में कुछ और तथा क्रियो एक दूसरे प्रकार की ही रहती है। वे वेश्यायें किसी को सुख का कारण कैसे हो सकती है ?" ____श्री दत्त ने पुनः प्रश्न किया कि 'यह पशु जाति का वानर ये सब बातें कैसे जानता है ?' को श्री दत्त के पास भेजी। वे दासियां उसके पास जाकर कहने लगी कि "सुवर्णरेखा कहां है ?" प्रलोभस्य राजधानीयं ज्ञेयः पण्याङ्गनाजनाः / सतः प्रयाणकं कृत्वा विश्वं विश्वं जयत्यसौ। ४००स०८ मनस्यन्यद् वचस्यन्यत् क्रियायामन्यदेव हि, यासा साधारणस्त्रीणां ताः कथं सुखदेतवे ।४०१॥स. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust