________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरजनविजय संयोजित सोमश्री का अज्ञात फल खाने से रूप का परिवर्तन इसके बाद एक भिल्ल सोमश्री को लेकर शीघ्र उस नगर से बाहर निकला। परन्तु रात्रि में जब सब सो गये तब छल करके सोमश्री कहीं भोग गई / उसने वन में भ्रमण करते हुए किसी एक अज्ञात वृक्ष को फल खा लिया / उस फल के प्रभाव से उसका सारा शरीर गौरवर्ण एवं युवती के समान सुन्दर हो गया। क्योंकि मंत्र रहित कोई भी अक्षर नहीं है, कोई वनस्पति की ऐसी जड़-मूल नहीं जो औषध न हो, पृथ्वी स्वामी रहित नहीं है परन्तु उसकी विधि बताने वाले संसार में दुर्लभ हैं। दूसरे दिन देवांगना के समान रूप लावण्यवाली उस सोमश्री को वन में देखकर एक धनसार्थवाह नामके व्यापारी उसको समझाकर चुपचाप उसको लेकर वेग से हर्ष पूर्वक सुवर्णकुल के तट पर पहुँचा। पहले उस नगर में बहुत वस्तुएं खरीदी परन्तु दूसरे दिन उस नगर में वही चीजें सस्ती मिलने लगी / धनसार्थ / वाह सोचने लगाकि बिना द्रव्य के किस तरह से ये सब सस्ती __वस्तुयें खरीदूगा / यह विचार कर वह श्रेष्टी उस सोमश्री को बेचने के लिये बाजार के चौक में ले आया / उस नगर की रुपवती नाम की एक वैश्या ने एक लाख द्रव्य देकर उसे खरीद लिया और अत्यन्त यत्न से नत्य आदि सब कलायें उस सोमश्री को सिखादीं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust