SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम चरित्र-द्वितीय भाग .. इस पर अवधि ज्ञान वाले मुनि भगवन्त सब वृतान्त जानकर कहने लगे कि बानरने जो कुछ कहा है वह सब बातें बराबर सत्य है इसमें कोई सन्देह नहीं। .. ... सब श्रीदत्त कहने लगा कि "कन्या और माता का किस प्रकार सम्बन्ध हुआ, इसका वर्णन मुझको कहो।" श्रीदत्त का ज्ञानमुनी से मिलना तथा कन्या का पूर्व वृतान्न.. तब अवधिज्ञानी मुनीश्वर कहने लगे, कि 'प्रथम कन्या का सम्बन्ध सुनलो / जब तुम दश दिन की अवस्था वाली कन्याको छोड़कर धन के लिये नौका पर आरूढ होकर चल दिये, तब कुछ दिन बाद शत्रुराजा के डरसे सब लोग उस नगर से इधर उधर भागने लगे। तुम्हारी स्त्री भी कन्या को लेकर गंगा के तट पर 'सिंहपुर' नाम के नगर में अपने बन्धुओं के समीप चली गई, तथा अपने बन्धुओं के समीप रहती हुई तुम्हारी स्त्री को ग्यारह वर्ष बीत गये / एक दिन रात्रि में एक दुष्ट सर्पने तुम्हारी कन्या को काटलिया, तब उप्त कन्या की माता तथा मामा आदि 'अनेक प्रकार के उपचार करने लगे, परंतु दुर्भाग्य से वह सब कुछ भी उपयोगी न हुआ, क्योंकि जो कुछ भाग्य में लिखा है उसका परिणाम सबको मिलता है, यह जानकर धैर्यवान व्यक्ति विपत्ति में भी कायर नहीं होता, तब उस कन्या की माता ने स्नेह से उसे एक पेटी में रखकर अपार जल राशि समुद्र में रख दिया। तुमने जिसको छल से लेलिया है, वही तुम्हारी पुत्रा है, यह सब वृत्तान्त सत्य है। .. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy