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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित कहते हो; तुम शीघ्र ही गहरे कूप में गिरोगे, क्योकिं असत्य बोलने से मनुष्य वाणी अस्पष्टता तोतलापन तथा निरर्थक बृथा बोलने वाला एवं गूगापन, तथा मुख रोग को प्राप्त होते हैं। इसलिये मनुष्य को चाहिये कि असत्य और तथा दुष्ट वचन कदापि न बोले / ____ इस प्रकार कहकर शीघ्रगति से वह बानर कूद कर कहीं दूर चला गया / तब श्रीदत्त सोचने लगा, कि यह जानवर इस प्रकार कैसे बोल गया ? मेरी माता तथा कन्या यहां से बहुत दूर हैं। तथा मेरी माता आदि इस प्रकार की आकृति वाली नहीं थी तो फिर वे दोनों यहां कैसे हो सकती है / इस प्रकार सोच कर 'स्वर्णरेखा' से पूछा कि तुम कौन हो ! तब स्वर्ण रेखा ने कहा कि क्या तुम मूर्ख मनुष्य की तरह इस पशु के बोलने पर तुम भ्रम में पड़ गये हो। _ इसके बाद श्रीदत्त ने वहां से उठकर वनमें इधर उधर घूमत हुए एक मुनीश्वर को देखा तथा उन्हें प्रणाम करके अंजलि बद्ध होकर पूछने लगा कि हे मुनीश्वर ! बानर के द्वारा मैं संदेह रूपी समुद्र में गिरा दिया गया हूं, इसलिये आप मुझको सत्य ज्ञान रूपी नौकासे बाहर निकालें / क्योंकि सज्जन व्यक्ति अपने कार्य से लापरवाह होकर दूसरे के परोपकार के कार्य में लगे रहते हैं। जैसे चन्द्रमा समस्त पृथ्वी को प्रकाशमान करता है, परन्तु अपने कलंक को साफ करने का अवसर उसको नहीं मिलता है। P.P.Ac. Gunratrasuri M.S. Jun.Gun AaradhakTrust ..
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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