________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित worw~ सम्मान पूर्वक पचास दीनार-सोना मोहर देता है, क्यों कि यह स्वर्ण रेखा राजा के अत्यन्त सम्मान की पात्र है। कन्या और स्वर्ण रेखा को लेकर श्रीदत्त का जानाः-- यह सुन कर श्रीदत्त मोहित होकर पचास दीनार देकर चुप. चाप उस कन्याके साथ स्वर्ण रेखाको रथमें चढ़ाकर एक बड़े वनः में ले गया। तथा वन में एक चंपाके विशाल वृक्षके नीचे दोनों स्त्रियोंके साथ बैठ कर जब श्रीदत्त अनेक तरह से मनोरंजन कर रहा था, उसी समय में बहुत सी वानरियों के साथ एक .. वानर आया / उसको देख कर श्रीदत्त ने स्वर्ण रेखा से कहा किइन वानरियों से इस वानर का क्या 2 सम्बन्ध है ? क्या ये सब. इस बन्दर की स्त्रियाँ हैं? तब स्वर्ण रेखा कहने लगी कि-पशुओंमें इतना विवेक कहां . से होवे ? कोई इसकी माता होगी कोई भगिनी तथा कोई कन्या, इस प्रकार आपस में एक दूसरे के अनेक प्रकार के अन्य सम्बन्ध भी होंगे / यह सब मैं कैसे बताऊ ? क्यों कि "पशु प्राणियों का जन्म निन्दित है / और उसमें विवेक नहीं होता, और कर्तव्य का ज्ञान भी नहीं होता है, उन्होंका जन्म निरर्थक है / तथा पशुओं को स्तन पान तक ही माता से सम्बन्ध रहता है / अधम मनुष्यों को स्त्री प्राप्ति तक, मध्य प्रकृति के मनुष्यों को जब तक गृहकाय में समर्थ रहती है तब तक माता के प्रति सद्भाव रहता है। परन्तु उत्तम प्रकृति के मनुष्यों का जीवन पर्यन्त तीर्थ के समान P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust