________________ विक्रम चरित्र द्वितीय भाग NANA रहा है, एक बहुत बड़ा आठ मुख वाला मत्स्य इस समय नावके नीचे से जारहा है, यह सुनकर कुतूहल वश जव शंखदत्त उस मत्स्य को ध्यान से देखने लगा, तब श्रीदत्त ने छल से उसको समुद्र में गिरा दिया। बाद में शीघ्र ही लोगों के आगे अपना शोक प्रदर्शित करता हुआ आर्त स्वर से बोलने लगा कि हे मित्र ! अब तुम्हारे बिना मेरे प्राण भी चले जायेंगे, इस प्रकार सब लोगोंको कहता हुआ जोर 2 से रुदन करने लगा। इसकेबाद लोगों के समझाने पर शोक को त्याग कर हृदय में प्रसन्न होता हुआ, वहांसे चलते चलते समुद्र तटपर स्थित "सुवर्ण कूल" नाम के नगर में पहुँचा / श्रीदत्त ने नगर में जाकर घोड़ा तथा हाथी आदि वहां के 'धन' नामके राजा को उपहार दिया। राजा ने प्रसन्न होकर उस दुष्टचित्त श्रीदत्त को हाथी का मूल्य देकर सम्मानित किया। इसके बाद नाव पर से कन्या सहित सब वस्तुओं को उतार कर उस श्रीदत्त ने राजा के कर माफ कर देने पर सस्ते भाव से बेच डाली / कुछ समय व्यतीत होने पर एक . दिन श्रीदत्त ने ज्योतिषियों को बुलाकर उस कन्या के साथ विवाह करने के लिये मुहूर्त का निश्चय किया। इसके बाद श्रीदत्त राजा की सभा में गया, वहां जाकर श्रीदत्त ने राजा के समीपमें एक सुंदर चामर हारणो को देख कर किसी एक मनुष्य .. से उसके विषयमें पूछा। तब उस मनुष्य ने श्रीदत्त से कहा कि राजा से सम्मानित इस 'स्वर्णरेखा' से वही एक बार बोल सकता है जो उसको " P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust