________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित का पार पाना असम्भव है। इस प्रकार दोनों को विवाद करते देख कर नाव-खेवैयियों-नाविको ने कहा "आप लोगोंका इस प्रकार का विवाद करना अत्यन्त दुःख दायी है / इसमें कोई संदेह नहीं; दो दिनों के बाद तटपर एक "सुवर्ण कूल" नामक नगर आवेगा, वहां पर राजा के बहुत से चतुर मनुष्य रहते हैं। वे लोग आप दोनो के विवाद का समाधान कर देंगे, तब तक आप लोग शांत रहो।" . नाविकलोगों की यह बात सुनकर दोनों ने परस्पर विवाद करना छोड दिया / परंतु श्रीदत्त मन में सोचने लगा कि लोग जीवन दान देने के कारण यह कन्या शंखदत्त को ही दिलायेंगे। इसलिये गुप्त रुप से कोई उपाय किया जाय जिससे यह कन्या मुझको मिल जाय / इसप्रकार विचार करके वह निर्दयी श्रीदत्त छल से शंखदत्तको विश्वास देने लगा। कहा भी है कि "जिसका मुख कमल के समान प्रसन्न, वाणी चंदन के समान शीतल तथा हृदय कैंचीके समान घातक, ये तीनों प्रकार धूर्तों के लक्षण समझो शंखदत्त को समुद्र में फेंकना रात्रि होने पर शंखदत्त को नाव के उच्च भाग पर बठाकर श्रीदत्त बोलाकि हे मित्र ! समुद्र में एक बहुत बड़ा सुंदर कौतुक हो 卐 "मुखं पद्मदलाकारं वाचा चंदनशीतला / .... हृदयं कत्तरीतुल्यं त्रिविधं धूतलक्षणम् / / 336 // सर्ग ..P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust