________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित कोटिश्वर राज्य की, राजा चक्रवर्ती बनने की, चक्रवर्ती देवत्व की: तथा देव इन्द्रसन की इच्छा करता है। इस प्रकार श्राशा और तृष्णाका कहीं पार नहीं हो पाता / वहां 'कटाहाह' द्वीप में व्यापार करते हुए दोनों मित्रों ने जब एक दिन गणना की तो पूर्व जन्म के पुण्य प्रभाव से सब धन मिल करको आठ कोटि हुआ। तब दोनों मित्रों ने बहुत से क्रयाणक-किराना की वस्तु और अनेक हाथी घोड़े लेकर समद्र मार्ग से अपने घर के लिये वापस प्रस्थान किया। मार्ग में उन दोनों मे जल में: थोड़ी दूर एक मंजूसा, -पेटीको देखा / धीवरों-मच्छीमारों को भेजकर उसको अपने समीप हर्ष पूर्वक मंगवायी। दोनों मित्रों ने परस्पर इस प्रकार निश्चय किया कि जो कुछ सुवर्णरत्न आदि होगा वह विभाग कर दोनों मित्र आधा आधा ले लेंगे। इस प्रकार निश्चय किया और उन दोनों ने उस पेटी को खोला तो उसमें देखते हैं कि 'नीम के पत्र पर श्याम वर्ण की एकाकन्या अचेतन अवस्था में पड़ी हुई है। उसको देख वे दोनों बोलने लगे कि इसको सर्प ने काट लिया है, इसलिये कोई इसको जल के प्रवाह में प्रवाहित कर गया है। तब शंखदत्त कहने लगा कि मैं निश्चय ही इसको जीवित करूगा, ऐसा कहकर उसने मंत्र बोलकर जलके छींटे बदन पर देकर शीघ्र ही उस बालाको जीवित कर दिया। .. ... कन्या के लिये परस्पर विवादः-- इसके बाद मनोहर रूपवाली उस कन्या को देख कर शंखदत्त . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust