________________ विक्रम चरित्र द्वितीय भाग mmmmmmmmmmmmmmm इसके बाद एकदिन श्रीदत्त ने अपने मित्र 'शंखदत्त' को कहा कि "धनके बिना मनुष्य शोभा नहीं पासकता है, इसलिये धनका उपार्जन करना चाहिये / क्योंकि शील, पवित्रता, तप, क्षमा, सहनशीलता, लज्जलाता मृदुलता, प्रियता कुलीनता, ये सब मनुष्य धन हीनको शोभा नहीं देते हैं / जोमनुष्य निर्धन है वह रूपवान् हो तथा विद्वान् हो फिर भी पूजित नहीं होता / जैसे स्पष्ठ अक्षरों में राजा के नाम से युक्त तथा गोलाकार रुपये का नकली होने पर लोगों में उसका कुछ भी मूल्य नहीं होता, इसलिये समुद्र मार्ग से किसी देश में जाकर प्रचुर धन का उपार्जन करें, जो धन प्राप्त होवे उसका विभाग करके आधा आधा दोनों ले लेंगे। इस प्रकार निश्चय करके श्रीदत्त दशदिन की कन्या सहित स्त्री क घर में अकेली छोडकर स्वयं समुद्र मार्ग से परदेश चल दिया। श्रीदत्त और शंखदत्त का प्रयाण - इस प्रकार अपने मित्र के साथ धनोपार्जन के लिये समुद्र मार्ग से जाता हुआ क्रमसे श्रीदत्त व शंखदत्त कुशल पूर्वक सिंहल द्वीप पहुंचे। वहाँ नौ वर्ष रह कर बहुत सा धनोपार्जन किया, वहां से अधिक लाभ सुनकर कटाहाह' नाम के द्वीप के प्रति गये। क्योंकि धनहीन व्यक्ति एक सौ की अभिलाषा करता है, सौ रुपया वाला हजार की, सहस्त्राधिपति लक्ष की, लक्षाधिपति कोटिकी, + शील शौचं तपः शांतिर्दाक्षिण्यं मधुरता कुले जन्म | न विराजन्ति हि सर्वे वित्तहीनस्य पुरुषस्य // 31 // सगे 8 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. .. Jun Gun Aaradhak,Trust