________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित .. माता जहर पिलाती शिशुको, पिता बेचने जाय। नृप हरता है धन दौलत तो, उसका नहीं उपाय / / - इसके बाद निराश होकर वह सोम श्रेष्ठी अपने घर पर आ गया तथा अपने पुत्र से कहने लगा कि:- 'इस दुष्ट राजा ने बल पूर्वक यद्यपि तुम्हारी माता को अपहरण कर लिया तथापि मैं द्रव्य व्यय. करके उसे राजा के हाथों से छुडाके रहूँगा।' अभी अपने घर छः लाख का द्रव्य है, उसमें से आधा खर्च कर किसी बलवान राजा की सहायता लेकर तुम्हारी माता को बल पूर्वक शीघ्र ही छुडाऊंगा / इस प्रकार विचार करके वह श्रेष्ठी धन लेकर तथा अपने पुत्र से प्रेमपूर्वक मिल कर चुपचाप किसी अज्ञात् दिशा को चल दिया। - इसके बाद घर में निवास करते हुए 'श्रीदत्त' की स्त्री ने .. एक कन्या को जन्म दिया, कन्या जन्म सुन कर श्रीदत्त अपने मन में विचारने लगा कि माता पिता से वियोग हो गया है. धन का भी नाश हो गया है, हा आज पुत्री का भी जन्म हुआ है, उधर राजा भी विरुद्ध है / भाग्य विपरीत होने पर कौन विपत्ति नहीं पाता ? पुत्री के जन्म लेते ही शोक होने . लगता है.। जैसे जैसे वह बढ़ती है वैसे वैसे चिंता भी बढती ही रहती है। उसके विवाह करने में भी खर्च करना पड़ता है / इसलिये इस संसार में कन्या का पिता होना निश्चय ही कष्ट कर ही माना जाता है, पिताके घर का शोषण करने वाली, पति के घर को भूषित करने वाली, कलह और कलंक समूह का घर कन्या को जिसने जन्म नहीं दिया, इस मनुष्यलोक में वहीं मनुष्य वास्तव में सुखी है। PP.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust