________________ - विक्रम चारत्र द्वितीय भाग mmmmmmmmmm अत्यन्त घोर सातवी नरक में जाते हैं।'' "काम वशी होकर अन्यों की नारी हर कर लाता है। .. देव द्रव्य को खाने से सात बार नरक में जाता है / " .. मन्त्रियों की ये सब बातें सुन कर राजा सूरकान्त ने कहा कि 'मेरे प्राण भी चले जाय तब भी मैं उस वणिककी स्त्री सोमश्री को नहीं छोड़ सकता / आप लोगों का इस विषय में कुछ भी . बोलना व्यर्थ है।' . ... तब वे मंत्री लोग सोम श्रेष्ठी के समीप जाकर कहने लगे कि जैसे हाथी के कान में स्थिरता रहना असम्भव है ठीक उसी प्रकार राजा का इस दुष्ट कार्य से निवारण करना असम्भव है / जिस प्रकार विद्युत्पातको कोईरोक नहीं सकता, कोईनदीके वेगको रोक नहीं सकता, कोईअत्यन्त उत्कट वायुको रोकनहीं सकता, तथा अग्निको भी कोई मनुष्य धारण नहीं कर सकता / माता यदि पुत्र को विषभक्षण करावे, पिता अपने सन्तान का विक्रय करे, राजा यदि प्रजा के सर्वस्व का अपहरण करे तो इसका क्या उपाय हो सकता है ? अर्थात् यदि 'रक्षक' ही 'भक्षक' बन जाय तो इसका क्या उपाय हो सकता है ? 卐 "भक्खणे देवद्व्वस्स परत्थी गमणेण य / / सत्तमं नरयं जंति सत्तवारा उ मोयमा !" संर्ग॥२६॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust