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________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित सेवक लोभ विना, जिसके धन में जनता सब दुःख दुराई, उपदेशक ज्ञान निधि गुरु वयं को-पाता है पुण्यसे भाग्य जगाई" सोम श्रेष्ठी का उद्यान में जाना-- एक दिन वह सोम श्रेष्ठी अपनी प्रिया के साथ बाग में मनोरंजन के लिये गया, उसी समय अनायास ही वहां राजा सूरकान्त भी अपने अन्तःपुर के साथ उपस्थित हुआ, तथा अपने रूप से अप्सराओं को भी तिरस्कृत करने वाली सोमश्री को देखकर मोह में अन्ध होकर बलात्कार पूर्वाक उसे वह दष्ट बुद्धि राजा अपने अन्तःपुरमें ले गया, क्योंकि प्रायः मुखों की बुद्धि दूसरेके धन और परस्त्री में ही रहती है। जैसे रोगी को जो शरीर के लिये अपथ्य होगा वही अच्छा लगता है, कामदेव कलाओं के कुशल व्यक्ति. को भी क्षण मात्र व्याकुल कर देता है, पण्डितों को भी तिरस्कार योग्य कर देता है, धैर्यवान पुरुषको भी धैर्य रहित कर देता है / . - इसके बाद निरुपाय होकर सोम श्रेष्ठि राजा के मान्य मंत्रियों के घर पर गया, उनको पात वाणी से अपनी स्त्री के अपहरण का सब समाचार कह सुनाया, इस पर मंत्री लोग राजा के समीप जाकर स्पष्ठ शब्दों में इस प्रकार कहने लगे किःसूरकान्त राजा को मन्त्री का उपदेशः___राजन ! पर स्त्री हरण करने में अत्यन्त घोर पाप होता है। . क्योंकि शास्त्र में ऐसा कहा है कि जो कोई देव मंदिर सम्बन्धी द्रव्य मक्षण करते हैं तथा पर स्त्री गमन करते हैं,वे प्राणी सात बार P.P.AC.Gunratnasuri M.S. - Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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