________________ विक्रम चरित्र द्वितीय भाग RAN पैतीसवां प्रकरण श्रीदत्त केवली का पूर्व-चरित्र . खल खंडन, मंडन (सुजन सरल सुहृद सविवेक। गुण गंभीर, रण सूरमा, मिलत लाख में एक / / . केवली भगवान श्री श्रीदत्त मुनीश्वरजी राजा मृगध्वज एवं . सभाजन के समक्ष अपना ही! रोमांचकारी चरित्र इस प्रकार सुनाने लगे। "इसी भारत वर्ष में "मंदिर" नाम का एक अत्यन्त रमणीय नेगर था। उस नगर में “सूरकान्त" नाम का राजा नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करता था। उस राजा के आदर पात्र श्रेष्ठियों में शिरोमणि एक "सोम" नामका श्रेष्ठी था। उसकी स्त्री का नाम "सोमश्री" था, उसके पुत्र का नाम 'श्रीदत्त" था, उस श्रीदत्त के निर्मल शीलवती "श्रीमती” नाम की स्त्री थी। इस प्रकार वह श्रेष्ठी सब प्रकार से भाग्यशाली था, क्योंकि प्रेम पात्र पत्नी, विनय युक्त पुत्र, गुणवान भाई, स्नेही बन्धुजन, अत्यन्त बुद्धिमानमित्र जन, नित्य प्रसन्न चित्त स्वामी; लोभ रहित सेवक, सदैव दूसरे के कष्ट को शान्त करने के उपयोग में आने वाला धन 'ये सब भाग्योदय से ही किसी पुण्यशाली, व्यक्ति को ही प्राप्त हो सकते हैं। "प्रेम भरी वनिता, विनयान्वित पुत्र, गुणी निज सहोदर भाई, बन्धु सस्नेह मिले, होसियार सुमित्र, प्रसन्न सदा रह साई / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak 1.