________________ साहित्य प्रमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 49 तुम्हारे सब उपाय व्यर्थ गये / तब शुकराज बोल उठा,हे भगवन ! आपने जो कुछ कहा है वह सत्य है। शुकराज को मन में दुखी .. होते देख कर श्री दत्त केवली भगवान ने फरमायाः - हे शुकराज ! इसमें आश्चर्य जनक कोई बात नहीं / यह संसार एक विचित्र नाटक ही है, जिसमें हरेक जीव अनेक रूप से एक दूसरेके साथ पिता पुत्र, स्त्रीपुरुष, हजारों बार होचुके हैं। इस संसार में ऐसी कोई जाति नहीं, ऐसी कोई योनि नहीं, ऐसा कोई स्थान नहीं, कोई ऐसा कुल नहीं, जिसमें प्राणी अनेकों बार जन्मको प्राप्त करके मरणको प्राप्त नहीं हुआ हो, इसीलिए किसीसे राग, द्वष कुछ भी नहीं करना चाहिए, मन में समता धारण कर सबसे स्नेह व्यवहार करना चाहिये। ... इस संसार में हजारों माता पिता हो गये, कितने ही पुत्र स्त्री का संयोग वियोग हो गया, वास्तव में मैं किसी का नहीं हूं, और मेरा कोई नहीं है, क्योंकि यह संसार एक माया जाल है। पुनः श्री दत्त केवली भगवान बोलेकि हे राजन ! इस संसार आश्चर्य जनक घटना को देख कर मुझे भी वैराग्य हो आया ! अब मेरा सारा ही वृतान्त तुमको विस्तार के साथ सुनाता हूँ, वह सावधान होकर सुनो। P.P.AC.Gunratnasuri M.S.' Jan Gun Aaradhak Trust