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________________ विक्रम चरित्र द्वितीय-भाग विमलाचल से निकट एक बागमें श्री आदिनाथ भगवान के मंदिर के समीप आश्रम में गांगलि ऋषि की 'कमल माला' नामकी कन्या के रुप में उत्पन्न हुई है। उन दोनों के संयोग से उनके . घर पुत्रके रुप में तुम जन्म ग्रहण करोगे और जाति स्मरण ज्ञान प्राप करके संसार रुपी समुद्र तरोगे। श्री केवली भगवान के मुख से यह बात सुनकर वह देव अत्यन्त प्रसन्न होकर सब अवयवों से सुन्दर शुक रुप बनकर तुम्हें उस आश्रम में लेजाकर ऋषिकी कन्या से विवाह कराकर अत्यन्त स्नेह से उस देव ने श्रृंगार के साधन; अत्यन्त मनोहर वस्त्र और आभूषण दिये, तथा पुनः उसी शुक रूप में तुमको अपने नगर में लाकर छोड़ा / वह देव भी अपने को सुलभ बोधि जानकर आनन्द से स्वर्ग में गया। वह जितारि देव आयु.पूर्ण होने पर स्वग से च्युत होकर तुम्हारा पुत्र हुआ है, जिसका बड़े उत्सव के साथ तुमने शुकराज नाम रखा है, इसी वृक्ष के नीचे तुम को अपनी राणी के साथ वार्तालाप करते देखकर जातिस्मरण ज्ञान हुआ इस कारण यह तुम्हारा पुत्र अपने मन में बिचारने लगा कि मेरे ये दोनों माता-पिता पूर्व जन्म में मेरी अत्यन्त प्रेमपात्र प्रिया थी, आज मैं उन्हें पिता और माता कैसे कहूं ? इसलिये मौन रहना ही अच्छा है, ऐसा अपने मनमें सोच कर तुम्हारे पुत्र ने मौन धारण किया, हे राजन् ! इस में कोई रोग का कारण नहीं है, इसीलिए P.P. Ac. Guriratnasuri M.S: .. Jun Gun Aaradhaइसलिए
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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