________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित O किये, जब अन्तिम भव में वे देवियाँ स्वर्ग से च्युत हुई तव 'जितारी' देव मोहके कारण बहुत दुखी हुआ। उस दुखके कारण वह देव वावड़ी उद्यान आदि में कहीं भी क्रीड़ा करने नहीं जाता था क्योंकि ईर्ष्या, विषाद, मद, क्रोध, माया लोभ आदिसे देवभी दुखी रहते हैं, अथोत् देव लोगों में भी पूर्ण सुख कहां है ? देव विषय में सदा आसक्त रहते हैं, नारकी के प्राणी अनेक प्रकार के दुख से दुखी रहते हैं; तिर्यव्च-पशु योनि सदा विवेकसे रहित है, तब केवल मनुष्य भव में ही पुन्य से जीव को धर्म की सामग्री प्राप्त होती है। केवली भगवान से प्रश्न व निर्णयः. एक दिन वह देव धर्मोपदेश सुनने की इच्छा से लक्ष्मीपुर के बाहर के उद्यान में रहे हुए श्री धर्म-घोषसूरीश्वरजी नाम के केवली भगवान समीप आया / सूरिजी महाराजने मधुर वाणीसे सुन्दर धर्म देशना दी। तत्पश्चात केवली भगवान से उस देव ने पूछा 'हे भगवन ! मैं सुलभ बोधि हूँ ? या दुर्लभ बोधी हूँ ?' तब केवली भगवान ने फरमाया कि "तुम सुलभ बोधि हो।" . यह सुनकर देव ने पूछा कि “किस प्रकार होगा ?" कृपा .कर बताइये / तब केवली भगवान ने कहा तुम्हारी दोनों देवियाँ जो पूर्व भव में स्वर्गसे च्युत होकर हंसीका जीव-शुभ कर्मके योग से 'क्षितिप्रतिष्ठित' नगर में 'मृगध्वज' राजा हुआ है, और सारसी का जीव. पूर्व भव. में किये हुए कपट के कारण P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust