________________ vuuuuuuuuuuuu MM साहित्य प्रेमी मुनि निजनविजय संयोजित 'जितारी राजा का देहान्तः... जिन प्रसाद के शिखर पर स्थित शुक को देखते 2 उसी समय राजा ने शरीर त्याग कर दिया। मरते समय राजा का ध्यान शुक की ओर था इसी लिए वे वहां से मरकर उनकी आत्मा शुक की योनि में उत्पन्न हुई क्योंकि उच्च उच्चतर मध्यम हीन हीनतर स्थानों में अर्थात् जिसको जहां जाना है मरते समय चित्त में वही भाव उत्पन्न होता है। निरंतर अनेक पाप पुन्य करने के कारण तन्मय आत्मा वाले प्राणियों की अंत अवस्था में जैसी मति होती है वैसी ही गति होती है। मरण कब होगा ! उसको कोई . निश्चित समय नहीं है इसी लिये सदा सद् ध्यान करना चाहिये। दोनों रानी की दीक्षा व स्वर्ग गमनः राजा की मृत्यु के बाद प्रजाजन आदि लोग कहने लगे कि यह धमवान एवं पुन्य वान् राजा स्वर्ग में गया होगा क्योंकि प्राणियों की गति तथा अगतिको गृहस्थी मनुष्य कैसे जाने ? अर्थात त्रिकालज्ञानी के सिवाय मनुष्य नहीं जान सकते / स्वजन आदि मिलकर राजा की अंतिम प्रतक्रिया समाप्त की। बाद में इस संसार की असारता जानकर हंसी और सारसी दोनों रानियों को गैराग्य उत्पन्न हुआ / गुरु के समीप जाकर दोनों ने हर्ष पूर्वक दीक्षा ली / गुरु के आश्रय में ज्ञान ध्यान पूर्वक अच्छी तरह दीक्षा का पालन करते हुए निर तर छट्ट के पारणे, दो-दो उपवास छटट आदि घोर तपस्या करते हुए क्रम से उत्तम ध्यान में लीन ने दोनों आयु पूर्ण कर प्रथम स्वर्ग लोक में उत्पन्त हुई। . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust