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________________ विक्रम चरित्र .. दूसरे दिन राजा हर्षि चितत्त से श्रीविमलाचल पर श्री जिनेश्वर आदिनाथ को प्रणाम करने के लिये संघ से युक्त होकर चले और क्रमशः वहां पहुंच गये ! वहां जाकर भाव पूर्वक स्नात्रपूजा महापूजा, ध्वजारोपण संघ मालारोपण आदि संघ सहित राजा ने मानव जन्म को सफल कर लिया / इस प्रकार सुन्दर यात्रा करके मनुष्य जन्म के उत्तम फलों को प्राप्त करता हुआ संघ के साथ नयी बसाई हुई श्री विमलापुरी में राजा वापिस लौट आये। ..तत्पश्चात हाथी घोड़े सेना रथ आदि से युक्त होकर राजा "जितारि" अपनी पत्नियों के साथ शीघ्र ही श्री भदिलपुरी में आये। धर्मोपदेशः-- एक दिन नगर के उद्यान में गुरु श्री श्रुतसागरसूरीश्वरजी को आये सुनकर अन्तःपुर के साथ राजा उनकी वन्दना करने के लिए। गया / सूरीजाने धर्मोपदेश देते हुए फरमाया कि पूज्य व्यक्तियों की पूजा करना, दया, दान, तीर्थयात्रा, जप, तप, आगम का श्रवण परोपकार ये मनुष्य जन्म में आठ फल हैं। जिनेश्वर की पूजा आदि स्वर्ग तथा मोक्ष देने वाली है इस प्रकार सुनकर राजा जीव-दया रूपी धर्म में अत्यन्त दक्ष हुआ। न्याय नीति से राज्य करता हुआ राजा अन्त समय में हर्ष पूर्वक अनशन लेकर एक , समय श्री नवकार महामन्त्र सुनते सुनते ध्यान में तत्पर हुआ इसी बीच में श्री आदिनाथ प्रभु के मन्दिर के शिखर पर एक शुक को शब्द करते हुए देखकर उसमें राजा ने मन लगा दिया / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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