________________ साहित्य प्रमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित श्री आदिनाथ को प्रणाम करके ही अम्न और जल ग्रहण करूंगा। और मैं इस महातीर्थ की पैदल चल के ही यात्रा करूगा, इस प्रकार निश्चय कर राजा अपनी हसी और सारसी उन दोनों पत्नियों के तथा परिवार अदि को साथ लेकर उस यात्री संघ के साथ साथ श्रीविमलाचलतीर्थ कीओर प्रस्थान किया / क्रमशःसंघको चलते चलते सात दिन व्यतित हुए, एक विशाल घनघोर जंगल में संघ ने आकर विश्राम किया. / राजा को अन्न-पानी सात दिन से त्याग था इससे वे थके हुए मालूम होते थे, इससे सकल संघ और मंत्री आदि व्याकुल होकर-सोचने लगे, कि महाराजा ने बिना सोचे ही यह प्रतिज्ञा ले ली; यहाँ से श्रीसिद्धाचल तीर्थ दूर है भूखे प्यासे महाराजा वहाँ कैसे पहुँच सकेगें, इत्यादि सोच कर मंत्री आदि यात्रीगण मिलकर सूरीश्वरजी के पास आकर पूछने लगे, कि अब कितना मार्ग बाकी है ?? तब सूरीश्वरजी ने कहा कि "यह काश्मीर देश है। मंत्रियों ने पुनः पुनः पूछा कि "राजा ने अत्यन्त दुष्कर प्रतिज्ञा ली है इसलिए रानी आदि सब लोग इस समय व्याकुल हैं," - सूरीजी ने राजा को बुलवा कर पूछा कि तुमने सहसा नियम : ले लिया है, इस लिए अब पारणा कर लो क्योंकि प्रतिज्ञा के अंदर 'सहसागार' आदि चार आगार सर्वत्र कहे जाते हैं अर्थात् विषम अवस्था में छूट ली जाती है; नहीं तो धर्म की अवहेलना होगी, हे राजन् ! लाभालाभ का विचार कर के सब कार्य करना चाहिये / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust