________________ '40 . विक्रम चरित्र है पाप को नष्ट कर देता है, सज्जनों के नेत्रों को पवित्र करता है। वह शोभा सम्पन्न श्री पुंडरिकगिरि महातीर्थ सबसे उत्कृष्ट रूप में विजय मान रहे।" - "उस श्री विमलाचल महातीर्थ में चार तीर्थकर समवसरण कर चुके हैं और भविष्य काल में बाविसवें तीर्थकर श्री नेमिनाथ भगवान के सिवाय उन्निस तीर्थ कर समवसरण करेंगे / जहाँ पर श्रीपुडरिकगणधर आदि पांचकोटि मुनीयों के साथ तथा नमि विनमि आदि दो क्रोड़ मुनियों के साथ सिद्ध हुए, द्राविड़ऋषि तथा वारि खिलजी इस कोटि मुनियों के साथ एवं श्री कृष्णजी के पुत्र प्रद्युम्न और शाम्ब कुमार साढे तीन कोटि मुनियों के साथ इसी तीर्थ पर सिद्ध हुए हैं और जहाँ पर श्री पांचपांडव, नारद ऋषि, हराम, भरत, तथा अन्य दशरथजी के पुत्र एवं सेलगसूरी आदि अनेक उत्तम आत्मा कर्म से विमुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हुए : उस श्री शत्रुजय पर्वत पर सिद्ध हुए कि जिसको गणना देव भी "नहीं कर सकते / उनकी गणना आकाश को अंगुली से नापना तथा गहरी नदी के जल का परिणाम जानने के समान असम्भव ही है, हे राजन् ! अधिक क्या कहें !" / राजा की तीर्थ यात्रा के लिये दृढ़ प्रतिज्ञाः इस प्रकार उस महातीर्थ की बड़ा भारी महिमा सुनकर महाराज ने तत्काल मंत्री आदि के समक्ष प्रतिज्ञा की, कि श्री विमलाचल पर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust