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________________ 36 विक्रम चरित्र स्वयंवर में जितारी राजा को निमन्त्रणः राजा ने अपने स्वजनों के साथ विचार करके शानदार स्वयंवर मंडप बनाया। माघशुल्का अष्टमी का निश्चय मूहूर्त करके बहुत से देशो में कुकुम पत्रिकाए भेजी गई / मैं इसी कुकुम पत्रिका को लेकर आपको यहां देने आया हूँ। आप कुकुम पत्रिका को पढ़ कर वहां अवश्य पधारें। इस कुकुत्रिका को पढ़ कर राजा अपने परिवार के साथ स्वयंवर में आया / दूती से कहे हुए, उनके वश को सुनती हुई अंग, बंग, तिलंग आदि बहुत से देशों के राजाओं को छोड़ कर सिंहासन पर बैठे हुए जितारी राजा के कण्ठ में उन दोनों कन्याओं ने मनोहर वरमाला पहनादी! मनोहर रूप-वाली उन दोनों कन्याओं से विवाह करके . राजा जितारी दहेज में दिये हुए बहुत से घोड़े और हाथियों को प्राप्त कर वहां से अपने नगर के प्रति प्रस्थान किया! दोनों पत्नियों सहित राजा को अपने नगर में आते हुए (सुनकर नगर की महिलायें नई विवाहित दोनों रानियों को देखने की अमिलाषा से एक नेत्र में ही अंजन लगाकर और कई महिलायें अपने अपने काम को अधूरा ही छोड़कर उत्सुकता से राज मार्ग में आकर खड़ी हो गई। इसके बाद राजा "जितारि" P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Irust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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