________________ ने मुझे पकड़ा / दंडय बना / तब दमयंती के आदेश को मानकर दीक्षा ली, पाली और अंत में परमात्मा का स्मरण करते देह छोड़ा और देव बना। . माताजी ! आज भी आनन्दविभोर हूँ कि, यदि तुम्हारी शरण मिलने न पाती तो मेरे जैसे चोर, बदमाश, परस्त्रीगामी, वेश्यागामी तथा शराब और मांसाहार करनेवाले की दशा क्या होने पाती ? परंतु मेरा सद्भाग्य था कि, तुम्हारी दयादृष्टि मेरे पर पड़ी, मुझे अभयदान मिला और अरिहंतों के शासन के द्वार पर आया, मैत्रीभाव का विकास करानेवाला संयम मिला, और मैं कृत्य-कृत्य बन गया। . देवदुर्लभ मनुष्यावतार प्राप्त करने पर भी जिनके जीवन में हिंसा, झूठ, संसार की: माया, मोहपरवशता, इन्द्रियों की गुलामी, भौतिकवाद की पराधीनता, स्वस्त्री का त्याग, आदि दुष्कृत्यों की भर. मार होती है, उनका मस्तिष्क पाप से भारी होने के कारण वे बिचारे उर्ध्वभूमि (देवभूमि) कैसे प्राप्त कर सकेंगे? इसीलिए महर्षियों ने कहा इन्सान ! गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी इन्द्रियरुपी घोड़ों के मुख में सम्यग्ज्ञान की लगाम डाल देना, मनरुपी चोर को चाबुक लगाकर आत्माधीन बनाना, तथा परस्त्री, वेश्या, भाभी, साली, सहपाठिनी, शिष्या, छात्रा, पड़ोसन, स्त्री का त्याग कर स्वस्त्री में ही रमण करना तथा शराब, आसव, मांस, अभक्ष्य, * अपेय, अनंतकाय, होटल, रेस्टोरेन्ट आदि का सर्वथा त्याग कर के अपने घर की रसोई खाने में मन लगाना इस प्रकार गृहस्थाश्रम * में रहते हुए भी उन भाग्यशालीयों के लिए देवलोक की प्राप्ति सुलभ बनती है। - महासतीजी ! यदि आप जैसी पुण्यात्मा, अरिहंतोपासिका श्रमण. धर्मानुरागिणी, श्राविका ने मेरी उपेक्षा कर ली होती तो मेरे भाग्य में अधर्म पापाचरण आदि के अतिरिक्त दूसरा क्या था ? और उस परिस्थिति में यदि मर जाता तो नरक आदि दुर्गति के अलावा मेरे नशीब 97 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust