________________ को छोड़कर सगा भाई, सगेभाई का शत्रु शीघ्रता से बन जाता है। इसी सूत्र को सत्यार्थ बनाने का इरादा रखनेवाला छोटा भाई कुवर दिन प्रतिदिन बड़ेभाई नलराजा के प्रति ईर्ष्यालु, द्वेषी तथा छिद्रान्वेषी बनता गया / उत्पन्न हुए दुर्गुणों को उसी समय यदि दबाया न जाय तो बढ़े हुए या बढाये हुये दुर्गुण मानव की मानवता तथा खानदान की खानदानी को दानवता तथा दुर्जनता में परिणत करने में देर करते नही है। शास्त्रकारोंने लज्जाको गुणोंकी माता कहा है, जब बडी मुश्कली ओं से उपार्जित गुणोंको नाश करानेवाली ईर्ष्या है / दूसरोंकी अच्छी बात श्रीमताई, सत्ता, अच्छे पुत्र-पुत्री, विद्या, वैभव बंगले तथा उजले वस्त्रों को देखकर जिसके दिल में उनको गिराने की, अपमानित करने की तथा निदित करने की भावना हो उसे ईर्ष्या कहते हैं / नलराजा का यश, वैभव तथा राज्योत्कर्ष को देख देखकर कूबर अपने मन में जलने लगा। राक्षसी के माफिक जलन एक ऐसा दुर्गुण है / यदि उसको मर्यादित न किया जाय तो जलनेवाले को ही जलाकर राख कर देती है। _ नलराजा के जीवन में दो भवों की संयमाराधना है, अरिहंतो के पंचकल्याण की सेवा है, मुनिराजों की वैयावच्च द्वारा उपार्जित पुण्यकमाणी है तथा निकट भविष्य के भवों में केवलज्ञान प्राप्त करने की योग्यता है, तथापि एकभव में मुनिराज को अपमानित करने का पाप भी स्टोक में पड़ा हुआ है, इसलिए तो उस पापफल को भुगतने के लिए ही सर्वगुण सम्पन्न नलराजा में जुगार खेलने का शौक भी भारी मात्रा में था। सात व्यसन जुगार, मांसभोजन, शराबपान, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन, चौर्यकर्म तथा शिकार ये सात महाव्यसन कहे गये है संस्कृत कोषमें व्यसन 29 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust