________________ का अर्थ ही दुःख होता है / जिनके सेवन से इन्सान की धार्मिकता, सदाचारिता तथा सत्य भाषिता समाप्त होकर जीवन के अणुअणु में पापा चरण बढ़ता है तथा भूलों के ऊपर भूल, अपराध के ऊपर अपराध ही करता रहता है / फलस्वरुप उसको दुःखी-महादुःखी बनना अनिवार्य हो जाता है / जब तक इन्सान कर्मों के आवरण से युक्त है तब तक उसके वाल्यकाल की, यौवनकाल की भूलें वटवृक्ष के माफिक बढ़ जाती है। पूरे संसार को प्रकाशित करनेवाला चन्द्र भी कलंकित है तथा रत्न में भी कुछ न कुछ कसर रहती है, तो फिर इन्सान में कुछ न कुछ कसर रहने पावे इसमें कौन सा आश्चर्य ? नल राजा के जीवनमें भी यही कमजोरी थी इसीलिए तो उनको जुगार खेलने में मस्ती आ जाती थी। - छोटा भाई कुबर ये सब बाते जानता था अतः बड़े भाई के सामने जुगार खेलने का प्रस्ताव रखते ही नलराजा ने स्वीकार कर लिया। चौपट बिछा दी गई पाशे (सोगठी) तैयार कर रख दिये / आज कुबर भी खुशमिजाज मे था उसे पूरा विश्वास हो गया था कि, भाई के साथ जुगार में मैं जीत जाऊँगा जभी तो लुच्चाईपूर्वक नलराजा से कहा 'भैया ! जुगार के प्रत्येक दाव पर कुछ न कुछ रखा जाय तो खेलने के मजे में चार चांद लग जायेंगे। राजा ने प्रस्ताव मान्य रखा, जुगार चालू हो गया, ऊपरा ऊपरी पाशें फेंके जा रहे हैं, परंतु सब प्रकार से होशियार नलराजा के दाव आज सब विपरीत पड रहे है / गांव, नगर, कोश, हाथी, घोड़ों को भी नलराजा हार गये / पूर्वोपार्जित पापकर्म का उदय आता है, तब वह पापकर्म इन्सान को डंडे से नहीं मारता है, परंतु उसकी बुद्धि में गंदापन जिद्द तथा असद्ग्राहिता आदि स्थापित कर देता है / नलराजाने आखिरी दाव में अपनी प्राण प्रिया दमयंती को भी रख दिया / सामंतो में, मंत्रीओं में तथा प्रेक्षकों में हाहाकार मच गया, तब कोलाहल सुनकर दमयंती भी दौड़ती दौड़ती 30 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust