________________ 17 1. 17. 16 ] हिन्दी अनुवाद 16. राजा द्वारा मंत्री और वणिक्का गिरिनगर प्रेषण तथा पृथ्वीदेवीका कनकपुर आनयन इस प्रकार राजाने वणिक्से कहा तू परम स्वजन है जो तूने यह नारीरत्न मुझे दिखलाया। फिर राजाने आगे कहा अब उस सुन्दरीको झट लाकर दिखलाओ, तुम्हींने यह प्रकरण प्रारम्भ किया है तुम्हों इसे पूरा करो। मुझपर जो विरहको मार पड़ रही है उसे रोको / जाओ और शीघ्र ही उस राजकुमारीको ले आओ। राजाने सूर्य, चन्द्र व शुक्रकी कान्तिको जीतनेवाले आभूषणों द्वारा उस वणिक्का सम्मान किया और उसके साथ अपने बुद्धिमान महामंत्रीको भी भेजा। वह वणिक शीघ्र ही गिरिनगर जा पहुँचा। उसने लक्ष्मीके निधान राजा श्रीवर्मके दर्शन किये और। अपने शत्रुओंके लिए अग्नि रूप नरेशको नमस्कार करके प्रार्थना की-कि बहुत विस्तारसे क्या लाभ, आप अपनी कन्याको भेज दीजिए, जिससे श्रेष्ठ राजा जयंधरसे इस नव वधूका विवाह हो जाय। तब राजाने घोड़े, हाथी, रथ, पालकी, ध्वजा, छत्र, सेवक, विलासनीय सेविकाएँ, ओसके र समान उज्ज्वल हारावलि, कांचीदाम और किंकिणीका उपहार तैयार किया // 16 / / 17. वधूका सौन्दर्य वर्णन राजाने उक्त समस्त उपहार देकर अपनी कन्याको विदा किया और वह अपने वरके प्रेमसे निबद्ध होकर वहाँसे चली। उस मृगाक्षीको वणिक् कनकपुर लाया। वरने उसे देखा जैसे वह मदनको लक्ष्मी ही हो / उस सुन्दरीके नखतल में जो चमक देखी उससे मुझे ऐसा लगा जैसे वह तारापुंज ही हो। उसके अंगूठे जो अधिक ऊँचाईको धारण किये हुए हैं वे मानो नखोंके सौन्दर्य का कथन कर रहे हैं। उसके गुल्फ जो गूढता धारण किये हैं वे मानो भुवनको जीतनेकी मंत्रणा कर रहे हैं। उसके जंघायुगलका मानो दोनों नूपुर अपनी ध्वनि द्वारा वर्णन कर रहे हैं। घुटनोंके गोड़के परिग्रहसे युक्त वधूके शरीरका मानो कामदेव अभिमान कर रहा है। ऊरुरूपो स्तम्भोंपर णिमयी रसनारूपी तोरणसे रतिगृह शोभायमान है। कटिभागको विशालता अपनी प्रधानता न कारण रख रही है क्योंकि उसने मदनको निधिके स्थानको धारण किया है। यह विचार 'ते हुए मनके सौ टुकड़े हुए जाते हैं कि इस छोटेसे उदरमें इतनी गहरी नाभि कैसे समाती है। 'चन्द्रमुखीको त्रिवलीकी भंगिमा ऐसी शोभायमान है मानो वह उसके लावण्यरूपी जलकी हो / स्तनोंकी कठोरता दूसरोंके मानको नष्ट करनेवाली और बाहु युगल तो कामी पुरुषोंके का पाश ही है। गलेका ग्रैवेयक ऐसा मनोहारी है मानो रूपका अपहरण करनेवाला चोर गया हो / अधर मन्मथके रसका निवास है और दांतोंने मोतियोंको छटाको जीत रखा है / यदि लोग उसके कुटिल भौंहोंरूपी कामदेवके धनुषसे आहत होकर ही मृत हो जाते हैं, तो उस सुन्दरीके सिरके बाल क्यों कुटिलता धारण किये हुए हैं ? PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust