SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -9. 4. 10 ] हिन्दी अनुवाद हारको कान्ति, सम्यक्त्वको सुधर्म सम्पादन, दामशील व्यक्तिको घरमें स्थित मुनियोंकी पंक्ति, सरस व्यक्तिको सुललित काव्य प्रवृत्ति, भ्रमरको नये कमलके रसकी भुक्ति, वैयाकरणको की जानेवाली पदवृत्ति, देशको राजाके न्यायकी प्रवृत्ति, कुमुदाकरको चन्द्रज्योत्स्ना तथा यशस्वी पुरुषको यश-कीर्ति / उन फली हई लताओंसे क्या लाभ जिनके फूलोंका रस चखकर भौंरा चला जाता है। सौभाग्य तो उसी मालतीका श्लाघ्य है जिसमें मधुकर निरन्तर आसक्त रहता है / / 2 / / 3. वरको शोभा वधूसे मेघ इन्द्रधनुषको कान्तिसे शोभायमान होता है तथा मनुष्य सत्यवाणीसे। कविजनकी शोभा उसके द्वारा सुविरचित कथासे है। और साधु सिद्ध हुई विद्यासे शोभता है। मुनिवर मनको शुद्धिसे शोभित होता है तथा महीपति शोभित होता है निर्मल बुद्धि द्वारा / मन्त्रीकी शोभा मन्त्र विधि सम्बन्धी दृष्टिसे है / तथा सेवकको शोभा है उत्तम खड्ग यष्टिसे / वर्षाकाल धानकी समृद्धिसे शोभायमान होता है तथा विभव शोभता है अपने परिजनोंकी ऋद्धिसे। मनुष्य गुणरूपी सम्पत्तिसे शोभित होता है तथा कार्यारम्भ शोभता है उसकी समाप्तिसे / वृक्षको शोभा है उसकी फूली हुई शाखाओंसे तथा सुभट शोभता है अपने पौरुषके तेजसे। माधव उनके उर-स्थलमें विराजमान लक्ष्मीसे शोभित होते हैं और वरको शोभा है उसकी धवलाक्षी वधूसे / क्या पुरुषके शरीरको वह कलत्र और वह धनुष शोभायमान नहीं करते जो गुणधारी हैं, मुष्टिग्राह्य, शुद्धवंश और कोटीश्वर है // 3 // गुणधारी-गुणोंसे युक्त, प्रत्यंचा सहित / मुष्टिग्राह्य-क्षीणकटि, मुट्ठीमें पकड़ने योग्य / शुद्धवंश-शुद्धकुल, अच्छा बांस / कोटीश्वर-करोड़ोंका सम्पत्तिवान्, धनुषके छोरोंसे युक्त / 4. मुनिआगमन व नागकुमार द्वारा वन्दना लक्ष्मीमतिके मुखकमलका भ्रमर तथा परमात्माको नमनशील नागकुमार अपनी लीलायुक्त वन-क्रीड़ा द्वारा यथेष्ट सुख भोगता हुआ तथा राज्यश्रीका अनुभव करता हुआ त्रिभुवन-तिलक नगरमें निवास कर रहा था। तभी यहाँ पिहितास्रव नामक मुनिका आगमन हुआ मानो विधाता ने समाधिको, सरस्वतीको, दयाको तथा क्षमाको पुरुषका रूप प्रदान किया हो। मानो अहिंसाने उपशम, दम, यम व संयम रूप अपना क्रम प्रकट किया हो, मानो स्वयं धर्म प्रत्यक्ष हुआ हो मानो ऋषि सिद्धिविलासिनी सहित प्रकट हुआ हो, मानो उसके समस्त अंगोंकी घटना तप लक्ष्मी द्वारा हुई हो। और वह शीलगुणरूपी निर्मल रत्नोंसे जड़ा गया हो। मानो समितियोंने अपना विस्तार प्रकट किया हो, मानो तीन गुप्तियोंने अपना योग दिखलाया हो। वह पच्चीस भावनाओं के भावमें रत थे तथा उन्होंने समस्त बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह त्याग दिया था। रतिरमण नागकुमारने ऐसे उन ऋषिको जाकर वन्दना को तथा कामका दमन करनेवाले उन मुनिराजने उन्हें आशीर्वाद दिया। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy