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________________ -8. 15. 8] हिन्दी अनुवाद 141 सिद्धि प्राप्त करना चाहिए। तथा दीन-दुखियोंको ऋद्धि प्रदान करना चाहिए। इसो अवसरपर उस भृत्यने हाँका मारा और समस्त कन्याओंको बलाया। वे गजगामिनी कुमारियाँ पुरके भोतर चली गयों, और यहाँ प्रभु नागकुमार अपने मन्त्रियों के साथ मन्त्रणा करने लगे। स्त्रीके अधरों सदृश तुच्छरागकी दूसरोंको पीड़ा देकर क्या पूर्ति हो सकती है ? मैं उसी नृपत्व और जगत् भरमें यशकीर्तनको सार्थक समझता हूँ। जिसके द्वारा दीनका उद्धार - किया जाये // 13 // 14. नागकुमार और पवनवेगके बीच दूताचार ऐसा कहकर नागकुमारने अक्षय और अभयको आदेश दिया। वे दोनों दूत बनकर राजधानी में प्रविष्ट हुए। उन्होंने राजमहल में जाकर पवनवेगसे कहा- मकरकेतु नागकुमार आपको आदेश देते हैं कि आप रक्ष और महारक्षको राज्य देकर राजधानी छोड़ निकल जाइए। आप उन कुमारियोंकी इच्छा न करें और अपने ऊपर भीषण भवितव्यता ( दुर्भाग्य ) को न बुलावें / लोगोंके भक्षणकी विशाल क्रीड़ा करनेवाली कापालिनोके कपालमें मत पड़िए। इसपर पवनवेगने सरस . रीतिसे कहा-अनंग तो मुझे नये विरहसे मार रहा है / संग्राममें शस्त्र धारण करके नहीं, किन्तु प्रियाके मुखकमलके अवलोकन मात्र से / अतः मैं तो व्यूह रचना करके अलग बैठा हूँ। अनंग आवें और कन्या समूहको ले जायें / जो मैंने ससुरके साथ किया है वह उसके साथ भी करूंगा। लोभी गृद्ध उसको आँतों और मांसका भक्षण करें। यह सुनकर वे दूत वापस आ गये और पवनवेगके गुप्तचरोंके देखते-देखते उन्होंने अपने विशाल हाथोंमें शस्त्र ग्रहण कर लिये। वे पांचों योद्धा अपनी कान्तिसे भास्वर, देवों और असुरोंको जीतने वाले रत्नमय आभूषणोंसे सुसज्जित हो ऐसे शोभायमान हुए जैसे मानो नागों द्वारा सेवित प्रजापालक लोकपाल ही जगत्में उतर आये हों // 14 // 15. युद्धमें पवनवेगको मृत्यु वे पाँचों जैसे अति प्रचण्ड पाण्डव, जैसे मदसे आर्द्र गंडस्थलों वाले पाँच हाथी, जैसे पाँच सिंह हों, या पांच अग्नि अथवा पाँच मेरु पर्वत जिनके चरण लग गये हों, या जैसे मदनके पाँच बाण हों ऐसे वे पांचों नग्न तलवारें लेकर दौड़ पड़े। उन पाँचोंने शत्रुपक्षके घोड़े, हाथी, रथ और रथिकोंको विनष्ट कर डाला जैसे मानो पांच पाण्डवपुत्रोंने रणमें कौरवोंका मर्दन किया हो। पांचोंने शत्रुओंके कण्ठमें काँपते हुए प्राणोंको पंचत्व ( मृत्यु ) को प्राप्त करा दिया। श्रेष्ठ रथोंके चक्के चकनाचूर हो गये, उनके गजोंको गंधसे गज गर्जना करने लगे। जयन्धर पुत्र नागकुमारके योद्धाओंको मारसे रथ विहीन रथो न जाने कहाँ भाग गये। मुंहपर मार पड़नेसे घोड़े आहत होकर गिरने लगे और हिनहिनाते हुए ही उनकी अंतड़ियाँ विलुप्त होने लगों। इस प्रकार सेनाके P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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