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________________ 8. 13. 11] हिन्दी अनुवाद 139 12. वे कन्याएँ बन्दी कैसे बनों? उस नगरमें नंगी तलवारसे अपने तेजकी रक्षा करता हुआ श्रीरक्षराज नामक राजा था और उसकी रानी थी श्रीमती। उनके दो पुत्र हुए रक्ष और महारक्ष जो अपने बान्धवों सहित सज्जनोंके विनयका परिपालन करते थे। मैं भी उन्हीं श्रीरक्ष राजाको मनोरमा नामक पुत्री हूँ। उनकी अन्य पुत्रियोंके नाम हैं-विद्युत्प्रभा, विद्युद्वेगा, मन्दाकिनी, नागिनी, मदनलीला, पद्मिनी, शुद्धशीला, गोपिनी, श्यामांगी, मंगी, शृंगारकान्ती, देवकी, रेवती, सावित्री, शान्ति, चन्द्रप्रभा, चन्दिनी, चन्द्रलेखा, गायत्री, सरस्वती, बुद्धिमेधा, जयलक्ष्मो, अहिंसादेवी, सोमा, नवरंगा, रंभा, रमणीयरोमा, चारित्रगुप्ति, परचित्तचोरि, रति, काममारि, गांधारी, गौरी, सौभाग्यसीता, सतो, रत्नमाला, मालती, मालिनी, कंदर्पकोड़ा, कालांगी, कुरंगी, सुरंगी, तुंगो, मती, कैतवजननी, विचारभंगी इत्यादि / वे सब विधिपूर्वक पाली गयीं। आप उन्हें प्रत्यक्ष देख भी रहे हैं। सब मिलाकर पाँच सौ मनोहर, पोनपयोधरी, पुत्रियों सहित हमारा पिता रहता था। हमारे पिताका जो प्रसिद्ध पवनवेग नामक भागिनेय था उसने हम सभो मुग्धा कन्याओंकी मांग की, किन्तु उसे प्राप्त न हो सकी। इसपर उसने शत्रुका विनाश करनेवाली राक्षस विद्या द्वारा हमारे पिताको उनके सेनापति सहित मार डाला और हमारे दोनों भ्राताओंको बाँधकर सघन अंधकारयुक्त कारागृहमें डाल दिया // 12 // 13. नागकुमार द्वारा कन्याओंको छुड़ानेको योजना उस पवनवेगने उच्छ्वासें भर-भरकर हमें वरण (विवाहने)को इच्छा प्रकट की किन्तु पितृघाती उस दुर्जनके वरणकी हमें इच्छा नहीं हुई। तब उसने कहा-मुझसे क्यों अपना मर्म छिपाती हो? ऐसा कौन है जो दैत्यसे विरोध करे? यदि तुम अपने हृदयमें मुझसे वैरभाव रखतो हो तो वनमें जाकर प्रलाप करो। तब इस पुरुषने हमारा निरीक्षण किया और हाथमें डंडा लेकर हमारी रखवालो की / जिस प्रकार गोपालने नन्दिनी गौओंकी रखवालो को थो, उसी प्रकार हम उस पवनवेगको बन्दिनी बना ली गयों। यदि आप हमें छुड़ा सकें तो आप ही हमारे स्वामी होंगे। यदि नहीं तो व्यर्थ शरीरमें दाह क्यों उत्पन्न करते हो? तब दयालु कुमारने कहा-सुतप करनेसे दुःख भी हो तो वह भला है। धन यदि निर्धनोंके पालन-पोषणमें व्यय हो तथा संन्यासके द्वारा मरण भी हो तो वह अच्छा है। बलवान् द्वारा बलपूर्वक किये गये अनुचित कार्यके निग्रह और दीनके उद्धारके लिए यदि युद्ध भी करना पड़े तो अच्छा है। सज्जनोंके गुण ग्रहणसे ही स्वजनत्व तथा शरणागतोंके रक्षणसे ही पौरुष सार्थक होता है। अतएव मुझे यद्ध करना चाहिए। कार्य P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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