SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [6.7. 15 णायकुमारचरिउ घत्ता-आणंद घिवकंदउ हरिणसिंगखयकंदउ / पहुणा वाहिगइंदउ° पुच्छिउ मग्गु पुलिंदउ // 7 // Nagakumara is visited by Vanaraja. जहिं काणणंते णग्गोहतर तहिं हुंत पल्लट्टिउ सर्वरु। दिट्ठउ परमेसरु कुसुमसरु आवासिउ सण3 जणत्तिहरु / आएसपुरिसु परियाणियउ भिच्चहिं जाइवि परियाणियउ / तं दिह जयंधरणिवतणेउ झसकेउ देउ किं सो मणउ / पुच्छिउ कामें किं आइयउ को तुहुं विणएण विराइयउ / मंडलिउ कहइ णियगोत्तकउँ गिरिसिहरणयरे वणराउ हउँ / वणमाला बाला महु घरिणी लच्छीमइ सुय णयणहिं हरिणी। तहे तुहं वरु जोइहिं भासियउ पइँ समरहो विरहु विणासियउ / संदरिसियसीहवग्धमुहहो लद्धउ विजउ कंचणगुहहो। एत्थु जे पयडियपरिपिक्कदले आवेप्पिणु थिउ वडतरुहे तले। घत्ता-इय सहिणाणे जाणियउ आसि रिसिहिं वक्खाणियउ / महु भिच्चयणे संभाणियउ तेण बप्प सम्माणियउ // 8 / / Vanaraja entertains Nagakumara and marries his daughter Lakshmimati to him. पणवेप्पिणु कामिणिकीलणहो णिउ तेण कुमारु णिहेलणहो। तहिं छह विउ विलेवणु ढोइयउ देवंगु वत्थु संजोइयउ। आहरणु सरीर विप्फुरई मयरद्धउ परहियवउ हरइ। भोयणसंचारु ससालणयं विउलं गहण व्व ससालणयं / मिहुणं पिव णेहभावभरियं कव्वं पिव मत्तासंर्वेरियं / गईकम्मु व साउणिबंधयरं णटुं पिव णाणारसपवरं। संझामुह व्व जणरंजणयं कातंतं पिव कर्यविजणयं / वरकइवित्तं पिव विमलपयं केसरिकुल व्व णिण्णट्ठगयं / मुत्तं पंचिंदियसुक्खयरं दिण्णं कोसं देसं णयरं। सो वम्महु सा रई सई किं वण्णमि हउं जडकइ // 2 // 10. E गंयदउ. 8. 1.C होतउ. 2. C समरु. 3. E सिमिरु. 4. A E पुरिस. 5. C परिमाणियउ; D पहु आणियउ; E परिजाणियउ. 6. C तणुउ. 7. C विणएविणु राइयउ. 8. C जोयहिं. 9. E कंचणु विज्जउ गुहहो. 10. E जि परिपाडिरि पिक्कदले. 9. 1. E हे. 2. C omits the portion from विप्फुरइ to भोयणसंचारु in the next line. 3. B D भोयणयंचारु. 4. D संचरियं. 5. E गयकम्म व. 6. E कयवंजणयं. 7. A कुलत्थ. 8. MSS परिणाविउ. 9.C E सई रइ. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy