________________ -6.7. 14] हिन्दी अनुवाद रिपुमारणिका, निर्दारणिका, महिदारणिका, नभचारणिका, जलचारणिका, जलतारणिका, शरचारणिका, असिस्तम्भनिका, रथरोधनिका, बलमारणिका, खलदम्भनिका, यमशृंखलिका, ज्वालावलिका, मदविभ्रमिका, फणिमेखलिका, लोलाललिता, मरुच्चंचलिका, दाढ़ाज्ज्वलिका, रुचिविद्युतिका, सर्वौषधिका, विश्वासहिता, तारुण्यहरी, बहुरूपधरी, अन्धकारकरी, चन्द्रार्कश्री, कोपारुणिका, वरवारुणिका, गृहनाशनिका और कथाप्रेषणिका। देवों, मनुष्यों, और नागों द्वारा पूज्य इन गुणसम्पन्न विद्यादेवियोंको ले लेकर तुम्हारे पुण्यसे जितशत्रुने मेरे सुपुर्द किया // 6 // 7. नागकुमारको अन्य उपलब्धियां सुदर्शना देवीके उपर्युक्त वचन सुनकर प्रजाबन्धुर नागकुमारने कहा-हे देवि, आपने जो दिया वह मैंने स्वीकार किया किन्तु अभी ये विद्याएँ तुम्हारी इसी जयमंगल घोषसे गम्भीर पर्वत गुफामें ही रहें / जब समरांगणमें परिभ्रमण करने में दक्ष यह सुभट व्याल यहाँ आवे तब उसे दे देना / अब हे सुन्दरी, कोई और आश्चर्यकी बात बतलाओ। तब उसने कुमारसे कहा-यहां एक कालवेताल नामक गुफा है-हे चन्द्रमुख, आप उसमें जाकर प्रवेश करें। इसपर वह प्रचण्ड भुजशाली कुमार वहां जाकर गुफामें प्रविष्ट हुआ। वहाँ रहनेवाले वेतालने स्तुतिवचनोंसे उनकी स्तुति की और जितशत्रुको जो कुछ धन सम्पत्ति थी वह सब उन्हें समर्पित की। इस प्रकार मानो देव साक्षात् ( अनुकूल रूप में ) प्रकट हुआ। उस रजनोचरसे पूछकर नागकुमारने अपने पुण्यरूपी सुवर्णकी महान् कसौटो समान वह समस्त धन स्वीकार कर लिया। फिर वह सुन्दर कुमार वहाँसे निकला और वृक्षोंके बीच राक्षस रन्ध्रमें प्रविष्ट हुआ। वहाँ पृथ्वीपर पड़े हुए काष्ठमय मृत राक्षसको सहज ही एक लात मारकर फिर उन्होंने वहां रखे हुए उस धनुषको देखा जिसे पूर्वकालमें जितशत्रुने बनवाया था। वहाँसे निकलकर वह जिनमन्दिरमें गया। और फिर गजगामिनीचालसे वह फिर अपने शिविर में आया / उसकी तीनों पत्नियों, किन्नरो, मनोहरी और त्रिभुवनरतिने अपने प्रियपतिके साहसका वह समस्त वृत्तान्त सुना जिससे वे मनमें बहत विस्मित हुईं। फिर अपनी सेनाओं सहित नागकुमार वहाँसे चल पड़ा। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust