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________________ 99 -6. 9. 11 ] हिन्दी अनुवाद अपने गजेन्द्रपर बैठकर नागकुमारने उस आनन्दरूपी वृक्षके कन्द तथा हरिणके सोंगसे जड़ें खोदनेवाले पुलिंदसे मार्ग पूछा / / 7 / / 8. नागकुमारको वनराजसे भेंट उस वनको सीमा पर जो वटका वृक्ष था वहाँ तक नागकुमारको पहुँचाकर वह शवर लौट पड़ा। तत्पश्चात् उस प्रदेशके राजाने परमेश्वर नागकुमारके दर्शन किये और उन लोक-व्याधिहारकका उनके समस्त साथियों सहित आवास कराया। उनको आदेश-पुरुष जानकर सेवकोंने जाकर सूचित कर दिया था, इसीलिए उसने जयंधर राजाके पुत्रके आकर दर्शन किये और मनमें कहा-क्या यही वह मकरकेतु कामदेव हैं ? उससे नागकुमारने पूछा-आप कैसे आये ? इतनी विनयसे शोभायमान आप कौन हैं ? तब उस माण्डलीकने अपना गोत्र बतलाया और कहा कि मैं गिरिशिखर नामक नगरका वनराज हूँ। मेरी गृहिणी वनमाला नामकी युवती है और मेरी पुत्री अपने नेत्रोंसे हरिणोके समान लक्ष्मीमति है। योगियोंने भविष्यवाणी की थी कि उसके वर आप होंगे, क्योंकि आपने ही उस शवरके विरहका विनाश किया है / सिंहों और व्याघ्रोंके मुख दिखलानेवाली कांचन गुफासे विद्याएँ प्राप्त की हैं और पके हुए पत्तोंको प्रकटित करनेवाले इस वट वृक्षके नीचे आकर ठहरे हैं। इन चिह्नोंसे हमने जाना है कि आप वही महापुरुष हैं जिनका वर्णन पहले ऋषियोंने किया था। यह सूचना मेरे सेवकोंने मुझे दी है / इसीलिए हे स्वामी, मैंने आपका सम्मान किया // 8 // 9. नागकुमारका लक्ष्मीमतिसे विवाह कुमारको प्रणाम करके वनराज उन्हें अपने कामिनियोंकी क्रीड़ासे युक्त महल में ले गया। वहां उन्हें स्नान कराया, चन्दनादि विलेपन द्रव्य प्रस्तुत किये और देवांग वस्त्र पहनाये। उनके शरीरपर आभरण चमक उठे और वे मकरध्वज दूसरोंके चित्तका हरण करने लगे। फिर वनराजने कुमारको व्यंजनों सहित भोजन कराया जो उस विपुल गहनके समान था जहां शशक घर बनाकर रहते हैं। वह भोजन घृतके बने पकवानोंसे भरपूर था, अतएव उस मिथुनके समान था जो स्नेहभावसे भरा होता है और उचित प्रमाणसे युक्त होते हुए उस काव्यके समान था जो छन्दकी मात्राओंसे नियमित रहता है। भोजन बहुत स्वादयुक्त था, अतः उस गतिकर्मके समान था, जो आयुबन्धके सहित होता है / वह नाना रसोंसे पूर्ण था, अतएव उस नाटकके समान था जो शृंगारादि नाना रसोंसे उत्तम बनता है। वह लोगोंको अति रुचिकर था, अतएव उस संध्यारम्भ जैसा था जो लोगोंको मनोरंजक होता है। उसमें व्यंजनोंकी भरमार थी, अतएव उसका तन्त्र व्याकरणके समान था जिसमें व्यंजनोंका विचार किया गया है। उसमें शुद्ध दूध भी था, अतएव वह उस श्रेष्ठ काव्यके समान था जिसमें शुद्ध सुबन्ततिङन्त आदि पदोंका प्रयोग किया गया हो। वह भोजन रोग-व्याधियोंको नष्ट करनेवाला होने से उस सिंह-समूहके समान था जो गजोंका विनाश करता है। कुमारने इस प्रकारका पाँचों इन्द्रियोंको सुखदायी भोजन किया, और वनराजने उन्हें अपना कोष, देश और नगर भी समर्पित किया। फिर किसी एक दिन कुमारको गजगामिनी लक्ष्मीमतिका परिणय कराया गया। वे कामदेव और वह स्वयं रति / मैं उनका क्या वर्णन करूँ, मैं तो एक जड़ कवि हूँ॥९|| P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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