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________________ -3. 10. 14 ] . हिन्दी अनुवाद चरणयुगलमें पड़ गया। राजाने देखा और मनमें पीड़ित होकर कहा-हे देवि, तुमने उस महासतीको निन्दा क्यों की? देखो देखो, पुत्र उसका अभिनन्दन कर रहा है। माता-पुत्र दोनों घर आ गये। राजाके स्नेहकी तृप्ति पूर्ण नहीं हो रही थी। वह शीघ्र ही अपनी कनिष्ठ गृहिणीके निवासपर गया और सुन्दर वचन बोला-तुम्हारे पुत्रका नगरमें भ्रमण करना ठीक नहीं, कहीं मुझे अधर्म न लग जावे। कहीं महिलाओंको कामाग्रह न लग जावे और वे अपने घर परिवार न छोड़ बैठे। एक बात और है। कुमन्त्रीके मन्त्रसे जिसके कान भर जाते हैं उस स्वच्छन्द व्यक्तिकी मति विपरीत हो जाती है किन्तु उस बालमृगनयनी छोटो रानीने राजाके इस वचनकी अवहेलना 'की। उसने कहा-मेरा पुत्र अपनी इच्छासे नगरमें विचरण करे। जो मानिनी स्त्री मोहित होवे सो हो, क्योंकि मेरे पुत्रका हृदय शुद्ध है / जो दुर्जन जले सो जले, परन्तु मेरे सकल मनोरथ पूर्ण हो / रानीके ऐसा कहनेपर जब राजा अपने निवासको चला आया, तभी माताने अपने कुलतिलक पुत्रको आज्ञा दी कि हे सुन्दर, अच्छे सुन्दर हाथीपर चढ़ो जो अपने कर्णरूपी चंवरोंसे भौंरोंको उड़ाता हो, जो मद झरा रहा हो, जो सिन्दूरसे लिप्त हो तथा जो नक्षत्र माला एवं घुघरुओंकी आवलिसे अलंकृत हो। देवीके ऐसे वचन सुनकर उस भ्रमणशील कुमारने उसे भला माना तथा हाथीपर आरूढ़ होकर सेवकों सहित एवं चमकता हुआ उज्ज्वल खड्ग लेकर निकल पड़ा // 9 // 10. नगरनारियोंका नागकुमारपर मोह तब नगरकी मानिनी स्त्रियोंने मानिनियोंके मदका मथन करनेवाले कुमारको देखा। कोई स्त्री अपने पतिसे विमुख होकर इस कामदेवका मनसे स्मरण करने लगी। कोई कहती हे प्रिय, मेरे कण्ठको ग्रहण करो और मुझे अपना कण्ठाभरण बना लो। किसीने कहा मेरा हाथ पकड़ो और कंकन ले लो, तथा हार लेकर मेरे वक्षस्थलपर नखव्रण लगाओ / मेरा कटिसूत्र लेकर मेरे कटितटका मान करो, तथा हे देव, कन्धेसे कन्धा मिलाओ। कोई बोली मेरा केयूर ले लो। कामातुर मनुष्य क्या नहीं दे सकते ? कोई कहती मेरे अधरोंको लाली नष्ट हो जावे, हे प्रिय, ऐसा मुख चुम्बन दो। कोई कहती शीघ्र मेरे केशोंको ग्रहण करो जिससे मेरा चमेलीके पुष्पोंका अलंकरण गिर जावे। किसीने कहा मेरे इन दीर्घ नेत्रोंसे क्या लाभ जबकि वे तुम्हारे सौन्दर्यको पूर्णरूपसे न देख पायें। मेरी युगल भौंहोंके बाँकेपनसे क्या लाभ जबकि वे तेरी चतुराईको न जीत पायें। हाय, हाय, इन स्तनोंको कठोरतासे क्या लाभ जब उसके द्वारा तेरी स्तब्धता . ( कठोरता ) को न जोता जा सके। मैं तुम्हारी गम्भीरतासे हार गयी और अपनी नाभिको गंम्भीरताको दिखलाते नहीं लजाती। ." इस प्रकार मकरध्वजने उस नगरकी तरुणियोंको ताप पहुंचाया। और वे प्रेमके वशीभूत होकर उनमें लज्जा और मोहका मेल हो गया // 10 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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