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________________ -2. 14.13 ] हिन्दी-अनुवाद 14. कुमारके प्रति नागका स्नेह पिताने कुमारको प्रजाबन्धुर कहा और देवोंने उसे नागकुमार कहकर पुकारा / उसके प्रति अपना बहुत स्नेह प्रकट किया। नागदेवने उसे अपने पुत्रके रूप में स्वीकार किया। उसने कुमारको मणिमय विचित्र आभूषण व देवांग वस्त्र प्रदान किये। गुनगुनाते हुए भौंरोंके समूहोंसे युक्त मन्दार पुष्पोंकी मालाएँ, तथा चंवर और छत्र भी संजोये और नागचिह्न ध्वजाएं भी भेंट की / नागने कुमारको पृथ्वीकी कुक्षिमें अपना घर भी दिखलाया। कहो, पुण्यवान्के लिए क्या नहीं किया जाता? नागिनियोंने बालकको उठाया और जननीके समान अपना स्तन उसके मुखमें दिया। किन्नरियोंने उसकी वन्दना और अर्चना की तथा उत्तम देवोंकी देवियोंने उससे सम्भाषण किया। स्नेहसे अजित कुमारको पुनः पुनः निहारकर नागने उसे विदा दी। अभागे मनुष्यसे मित्र भी मुंह फेर लेता है और भाग्यके बलसे काला सर्प भी स्वजन बन जाता है / पिता बालकको घर ले आया। और वह माताके घरमें रहा। काल बीतनेपर एक शुभदिन धवल मंगलों सहित मृदंगोंको बजाते हुए उस कुमारको पृथ्वीको कुक्षिमें उस पुष्यदन्त भगवान्के सेवक नागके घर लाया गया, जिस प्रकार कि अर्जुनको (विद्या सीखने हेतु ) द्रोणाचार्यके घर भेजा गया था // 14 // इति नन्ननामांकित महाकवि पुष्पदन्तविरचित नागकुमारचरित महाकाव्यमें नागकुमार जन्म नामक द्वितीय परिच्छेद समाप्त / // सन्धि 3 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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