________________ चरितम्. 1 भानयरित्र सर्ग सौगा. (407 ) वेथते श्रन्थते यस्तु ग्रन्थते कत्थते कुधीः। अतत्यत्रैव संसारे कुयोनिषु पुनः पुनः // 15 // हुद्धि ( वेथते ) यायन। अरे छ, (धर्मनां भां) (श्रन्थते ) शिथिस रहे छे, (ग्रन्थते ) दुटिसता रै छ भने ( कत्थते ) पोतानां मोटर मा अरे छ, ते 24 // संसारमा नारी योनियोमा ( अतति ) वारंवार अभ्या अरे छ. 15. परिव्रजति भावेन गुरुचित्तं च चन्दति / विनयेन न कं जीवं पुन्थत्याप्तः स सेधति // 16 // समाथी ( परिव्रजति ) सागणी थाय छ, गुरुनायित्तने विनयथा ( चन्दति) साहा मापे छ, 4 वने (न पुन्थति) नेश सापतो नथी ते सात ( सेधति ) गाय छ. 16. इत्यादि भूरिशः सेधन शिष्यान्हर्षादिकान्निजान् / वलशाडे खादति स्म खदति स्म च तदिने // 17 // એપ્રમાણે હર્ષમુનીજી વિગેરે પિતાના શિષ્યને બહુ પ્રકારે ઉપદેશ કરતાં २त ससा सावी (खादति स्म ) माह।२ / मने सion (खदति स्म) स्थिति री. 17. समाप्तायां विभावाँ व्यहरन्नवसारिकाम् / शिष्यान्भक्तान्पुनश्चैवमुपाक्रामञ्च शासितुम् // 18 // ત્યાં તે રાત્રી સમાપ્ત થઈ એટલે વિહાર કરીને નવસારી આવ્યા. ત્યાં પણ ફરીને પોતાના શિષ્યોને અને ભક્તોને એ પ્રમાણે ઉપદેશ કરવા લાગ્યા. 18. भो न निन्दति यः कांश्चित्स शुन्धत्यचिरेण वै / न मङ्घति शरीरं यो न स कामेन मच्यते // 19 // .." शिष्यो नि (न निन्दति) निहती नथी, ते था310 समयमा (शुन्धति) शुद्ध याय ( पाबन थाय . ) भनेर पाताना शरीरने (न मङ्घति ) शश . भारत नथी ते आमवथी ( न मच्यते) 131 साता नथी. 18.. ' P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust