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________________ 94 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र चिंता मन में हो, तो उसे निकाल डालिए। यह दु:ख निरंतर नहीं रहनेवाला है। आज दु:ख की रात अवश्य है, लेकिन कल सुख का सूर्य अवश्य उदित होगा। अस्त के बाद उदय होना प्रकृति का नियम ही है. इसलिए आया हुआ कर्म का यह बादल बरस जाने के तुरन्त बाद सुख के सूर्य का उदय निश्चय ही होनेवाला है। इसलिए है नाथ, आप बिलकल चिंता मत कीजिए। मैं और हमारी आभापुरी की सारी प्रजा आपके साथ है। अंत में अगर कोई न भी रहा तो दयासागर ईश्वर तो हमारे साथ अवश्य ही रहेगा। ईश्वर का पीठबल हमें अवश्य मिलता रहेगा। कृष्ण पक्ष में क्षीण बना हुआ चंद्रमा जैसे शुक्ल पक्ष को पाकर फिर से बढ़ता है और पूर्ण चंद्र बन जाता है, पूरा प्रकाशमान् बन जाता है, वैसे ही आप 'चंद्र' भी पुण्यरूपी शुक्ल पक्ष का उदय होते ही फिर से अपनी पूर्ण कला से प्रकाशमान हो जाएँगे। हे नाथ, मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा सुहाग अखंडित रूप में बना रहनेवाला है। इस संसार में किसी के पास न संपत्ति कायम बनी रहती है, न ही विपत्ति ! जब तक प्रतिकूल भाग्य अनुकूल नहीं बन जाता है, अर्थात् भाग्य में परिवर्तन नहीं बन जाता है, अर्थात् भाग्य में परिवर्तन नहीं हो जाता है, तब तक धीरज से रहना चाहिए और परमात्मा के नामस्मरण में समय व्यतीत करते जाना चाहिए। बड़ों के लिए सुख जैसे बड़ा होता है, वैसे ही उनके लिए दु:ख भी बड़ा ही होता है। देखिए न नाथ, राहू अन्य तुच्छ ग्रहों की छोड़ कर चंद्र और सूर्य को अस्त कर देता है और उनको ग्रहण लगता है। कोदो जैसे तुच्छ अनाज में कीड़े नहीं होते हैं, लेकिन गेहूँ जैसे अच्छे अनाज में ही कीड़े होते हैं / है न यह बात, नाथ ? इसलिए आप अन्य सभी प्रकार की चिंताओं को त्याग दीजिए और मंगलमय प्रभू का बार बार स्मरण कीजिए / हे नाथ, विश्वास रखिए कि ईश्वर सब ठीक करेगा।" गुणावली और मुर्गा बने हुए राजा चंद्र के दिन ऐसे ही व्यतीत हो रहे थे। एक दिन की बात है। उस दिन एक साधु महाराज गुणावली के महल में भिक्षा के लिए पधारे / त्यागी साधु महाराज को देखकर गुणावली का मनमयूर नाच उठा / गुणावली ने साधु महाराज को विनम्रता पूर्वक बंदना की, उनका क्षेमकुशल पूछा और अत्यंत सम्मान से उन्हें आहार-पानी परोसा। ___ आहार-पानी ग्रहण करते समय साधु महाराज की दृष्टि अचानक गुणावली के पास ही पड़े हुए सोने के पिंजड़े पर पड़ी। सहज ही गुणावाली को एक श्राविका जान कर उपदेश देते हुए साधु महाराज ने कहा, "हे श्राविका ! इस संसार में बंधन किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। तुमने इस मुर्गे को सोने के पिंड़े में क्यों बंद कर रखा है ? पिंजड़े में कैद होने से उस बेचारे को कितना दु:ख होता होगा ?' P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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