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________________ 95 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र साधु महाराज की बातें सुन कर गुणावली ने विनम्रता से साधु महाराज से कहा, "हे मुनिराज, आपका दिया हुआ उपदेश बिलकुल यथार्थ है / मैं जानता हूँ कि अपने मनोरंजन के लिए किसी पंछी को पिंजड़े में बंद करके रखना महापाप है। लेकिन हे गुरूदेव, यह मुर्गा कोई सामान्य पछी नहीं है, लेकिन यह तो मेरा पति राजा चंद्र है। मेरी सास ने द्वेष भाव से मेरे पति का मुर्ग का रुप दे दिया है। इसलिए मैं उसे सोने के पिजड़े में रख कर उसको प्राणों से बढ़कर मानत हुए पालन कर रहो हूँ। हे मुनिराज, यह कोई सामान्य पंछी होता, तो मैं आपका उपदेश सुनकर तुरन्त उसे पिंजड़े से मुक्त कर देती। लेकिन मैं क्या करूँ गुरुदेव, मैं इस पंछी के बारे में ऐसा नहीं कर सकती!" गुणावली के मुँह से यथार्थ स्थिति समझ लेने के बाद मुनिराज ने गुणावली से कहा, “हे श्राविका, वीरमती रानी ने अनुचित कार्य किया है। चंद्र तो चंद्र ही था। उसके जैसा राजा इस संसार में मिलना बहुत कठिन है। खैर, जो होना था, सो हो गया। भविष्यत् को और कर्म की रखा को बदलने की सामर्थ्य किसमें है ? तुम्हारे सतीत्व और पतिव्रत्य से सारा संकट टल जाएगा। इस संसार के सभी जीव कर्माधीन हैं। कर्म की गति को रोकने की ताकत किसी में भी नहीं है। किए हुए कर्म का फल तो सबको भोगना ही पड़ता है। वीरमती तो इसमें सिर्फ निमित्त बनी हुई है। लेकिन मनुष्य को निमित्त से नाराज नहीं होना चाहिए, न उसका द्वेष करना चाहिए, न उस पर क्रोध करना चाहिए और न ही उससे तिरस्कार ही करना चाहिए। अपने किए हुए | कर्म का ही दोष देखना चाहिए। प्राणी के द्वारा स्वयं किए हुए शुभाशुभ कर्म ही सुख-दु:ख देनेवाले होते हैं। और कोई यह सुख-दुःख नहीं दे सकता है ! दुख आए, तो मनुष्य को अन्य / किसा को नहीं, बल्कि अपने किए हुए पापकर्म को ही दोष देना चाहिए। फिर से ऐसा दुष्कर्मपाप-कर्म करते समय मनुष्य को खूब सोचना चाहिए / 'कर्मबंध के समय ही सावधान होना चाहिए, पाप-कर्म का उदय होने पर संताप करने से लाभ नहीं हैं ' यह सूत्र मनुष्य के लिए शांति का दूत है। इस महत्तवपूर्ण सूत्र को तुम अपने जीवन के साथ जोड़ दो; पल-पल उसको याद रखो। इस सूत्र की सहायता से अनेक महापुरुष संकटरूपी समुद्र पार कर गए है। जो बात कर्म के अधीन है, उसमें मनुष्य के शोक या चिंता करने से कुछ नहीं होता है। शांति के साथ कर्म का फल भोग लेने से सुखसमृद्धि फिर से प्राप्त हो जाती है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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