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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र मरा सास का क्रोध अब शांत हुआ होगा। मैं जाकर अपनी सास से विनम्रता से प्रार्थना करूंगी आरव प्रसन्न होकर मेरे पति को मुर्गे से फिर मनुष्य बना देगी। इस प्रकार का विचार मन में रख कर गुणावली सास के पास गई. उसने सास के चरणों में झुक कर उसे प्रणाम किया और उसके सामने दीन मुद्रा कर बैठ गई। लेकिन क्रूर वीरमती मुर्गे को देखते ही गुस्से से भर उठी। उसने क्रोध से गुणावली से कहा, 'तू इस दुष्ट मुर्गे को लेकर मेरे पास क्यों आई ? उसे तुरन्न मेरी आँखों से दूर ले जा। जा, चली जा यहाँ से!'' मनुष्य का यह स्वभाव ही है कि उसके मन में जिसके प्रति द्वेष का भाव होता है, उसके दर्शन उसे दु:ख देनेवाले होते हैं। इसके विपरीत मनुष्य के मन में जिसके बारे में स्नेह का भाव होता है, उसके दर्शन मनुष्य को सुखदायी लगते है / वीरमती ने गुणावली से कहा, क्या अब भी तुझे यह गुर्णा चंद्र राजा जैसा प्रिय लगता ह? तर इस बर्ताव से तो तू मुझे बिलकुल बेवकूफ लगती है। जरा देख तो सही। क्या इसके ललाट पर राज्ययोग लिखा हुआ दीखता है ? इसके दर्शन से तो मेरे शरीर मेंआग-सी लग गई है। इसलिए इसे तू यहाँ से तुरन्त ले जा और पिंजड़े में डाल दे। इसके बाद तू कभी भूल कर भी इसे मेरे सामने लाने का साहस न कर / जा, चली जा यहाँ से, अभी!" सास के सनसनाते वचनबाणों से घायल हृदय लेकर गुणावली दु:खी मन से अपने पति मुर्गे को लेकर अपने महल में लौट आई। जब भाग्य रूठ जाता हैं, तब जगत् भी रूठ जाता है। जब भाग्य रीझ उठता है, तो जगत् भी रीझता है। मनुष्य का भाग्य जब प्रतिकूल होता है, तब अपने माने हुए भी पराये बन जाते है, और भाग्य जब अनुकूल होता है, तब दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं। गुणावली ने अपने पति मुर्गे के लिए सोने का पिंजडा और रत्नजड़ित सोने की एक कधी बनवा ली। वह अपने प्रिय पति मुर्गे को अच्छा भोजन खिलाती थी, अच्छा पानी पिलाती थी और प्रिय वचनों से अपने पति को आश्वस्त करते हुए कहती थी, 'हे प्राणनाथ, मैं आपको एक क्षण के लिए भी छोड़ कर नहीं जाऊँनी। मैं तन-मन से आपके पास ही हूँ। मैं अपने प्राण देकर भी आपकी रक्षा करूँगी। यद्यपि आप इस अवस्था में है, फिर भी मैं आपकी हर संभव तरीके से सेवा करूँगी। हे नाथ, आप ऐसी चिंता मन में बिलकुल मत लाइए कि 'अब मैं एक पंछी बन गया हूँ, अब मेरा भविष्य क्या होगा ?' ऐसी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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