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________________ 92 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र वह बार बार अशांति, असमाधि और दुर्ध्यान का शिकार बन जाता है, और जीवन की शांति, समता, समाधि और शुभ ध्यान को खो बैठता है / मनुष्य के जीवन में आनेवाली हर एक कठिनाई, बिमारी और मानभंग के मूल में उस मनुष्य का पूर्वजन्म में स्वयं किया हुआ कोई-नकोई अशुभ पापकर्म ही कारण स्वरूप होता है। - इस बाँधे हुए अशुभ कर्म का उदय होने पर संकट आता है। संकट के समय समाधिशांति देनेवाला एक मात्र यह कर्मविज्ञान ही है / जीवन संग्राम में जीव को विजयी बनानेवाला और फिर से उन्नति के शिखर पर चढ़ानेवाला भी यह कर्मविज्ञान ही है। कहते हैं कि समय ही दुःख की औषधि है। दु:ख के दिन हरदम बने नहीं रहते हैं। दु:ख की अंधेरी रात बीत जाने के बाद सुख का सूरज अवश्य उदित होता है। यही आश्वासन कर्मविज्ञान मनुष्य को प्रदान करता है। गुणावली की दासियाँ कर्मविज्ञान से परिचित थीं, इस प्रकार की समझदारी उनके पास थी, इसीलिए उन्होंने अपनी स्वामिनी गुणावली को समझाया, "स्वामिनी, इसमें वीरमती का कोई दोष नहीं है। दोष तो तुम दोनों के पूर्वजन्म में किए हुए कर्म का है। इसलिए है, स्वामिनी आप इस मुर्गे को ही अपना पति मान कर और प्रेम से उसका पालन करते हुए भगवान की भक्ति में अपना शेष जीवन बिताइए / व्यर्थ शोक करते रहने से कोई लाभ नहीं होगा। पूर्वकृत कर्म का फल भोगी बिना मनुष्य को छुटकारा नहीं मिल सकता है। पूर्वकृत कर्म ने जब तीर्थकर देवा और चक्रवर्ती राजाओं को भी नहीं छोड़ा तो फिर उनकी तुलना में आपकी गिनती ही क्या है ? जिसने जैसा कर्म किया हो। उसको उस कर्म का फल उसी रीति से भोगना ही पड़ता है / इसलिए हे स्वामिनी, रोना निरर्थक है। धैर्य धारण कीजिए। हर एक प्राणी के जीवन में सुखदुःख तो आता जाता ही रहता है। इस जगत् में सिर्फ सुख ही सुख किसके भाग्य में होता है ? फिर दूसरी बात यह है कि यदि माताजी प्रसन्न हो गई, तो तुम्हारे मुर्गे के रूप में होनेवाले पति को शायद फिर से मनुष्य बना देंगी।" गुणावली की सखियों ने इस तरह अनेक प्रकार से उसे समझाया, सांत्वना दी और धीरज भी बंधाया। इसलिए दासियों से आश्वासन पाकर गुणावली अपने पति मुर्गे को अपन प्राणों के समान मान कर पालन करने लगी और अपने दिन व्यतीत करती रही। गुणावली अब प्रतिदिन अपने प्रिय पति मुर्गे को विविध प्रकार के स्वादिष्ट फल खिलाती थी। कई दिन ऐसे ही बीत गए। फिर एक दिन गुणावली अपने पति मुर्गे को साथ लेकर अपनी सास वीरमती के पास चली गई। गुणावली अपने मन में यह सोचती रहती थी कि शायद P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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