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________________ री चन्द्रराजर्षि चरित्र 91 __ इस तरह दैव को भी उपालंभ देती हुई गुणावली मूर्च्छित होकर धरती पर गिर पड़ी। का प्रम प्रेमी का दु:ख नहीं देख सकता है। प्रेम निरंतर प्रेमी का सुख, कल्याण और उन्नति देखना चाहता है। गुणावली को मूर्च्छित होकर धरती पर गिरते हुए देखते ही उसकी दासियाँ दौडती हुई हां आ पहुँची। उन्होंने शीतोपचार कर के गणावली को फिर से होश में लाने की कोशिश ' गुणावलो होश में तो आई, लेकिन वह बार बार जोर जोर से विलाप करती जा रही थी। अपनी स्वामिनी की ऐसी विषम-दुखमय स्थिति में देख कर दासियों ने उसे आश्वस्त करते हुए ", "ह स्वामिनी, जो कुछ भी हुआ, उसमें किसी का दोष नहीं है। कर्म के अधीन रह कर यह तब होता ही रहता है। 'देवाधी ने वस्तुनि किम् चिंताभि ? अर्थात् दैवाधीन होनेवाली वस्तु और परिस्थिति में व्यर्थ ही चिंता करते रहने से क्या मिल सकता है ? गुणावली रानी की दासियाँ भी कर्मविज्ञान की कैसी अच्छी जानकार हैं ? इसी कर्मविज्ञान : फलस्वरुप मनुष्य महासंकटों, व्याधियों में इष्ट के वियोग और अनिष्ठ के संयोग में भी चित्त को समाधि-शांति बनाए रख सकता था; दु:ख में धैर्य और सुख में नम्रता-लघुता रख सकता या। कर्मविज्ञान एक ऐसी औषधि है जो चाहे जैसे दु:ख या संकट में भी मनुष्य को शांति, समाधि प्रदान कर आश्वस्त कर सकती है. उसके दान का विनाश कर उसे परमस्वास्थ्य प्रदान कर कता है / यह कर्मविज्ञान की संजीवनी जिनके पास नहीं है, या है, तो सिर्फ चर्चा करने योग्य या कर्मसिद्धान्तवेत्ता कहलाने के लिए आवश्यक जितनी ही है, वे बात-बात में दुर्ध्यान का शकार बन जाते हैं, बार बार अशांति और असमाधि का अनुभव करते हैं और अपना सारा जीवन अपना दु:खडा रोते रहने में ही व्यतीत करते हैं। आज के युग में चिंताअस्त मानव जाति को चिंतामुक्त करने के लिए भारत वर्ष की सभी पाठशालोओं, विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में जैनदर्शन के कर्मविज्ञान का पाठयक्रम अवश्य और जल्द से जल्द लगाना चाहिए और हर एक विद्यार्थी के लिए उसका अध्ययन आनवार्य कर देना चाहिए। यदि यह संभव न हो सका, तो हमारे जैन संघों में जहाँ-जहाँ गुजराती धार्मिक पाठशालाएँ चलती हैं, वहाँ बालकों को यह कर्मविज्ञान का दर्शन सिखाने का बबंध अवश्य कर देना चाहिए। आज का मनुष्य कठिनाइयों बीमारियों और मानभंग के सामने टिक नहीं पाता है। उसका मनोबल बहुत जल्द नष्ट हो जाता है। उसका सत्त्व धैर्य बना नहीं रह पाता है। इसलिए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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