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________________ 30 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र कोध की आग में मनुष्य का धर्म भी जल कर राख हो जाता है / क्रोधी मनुष्य क्रोध करते समय उसके परिणाम का भी विचार नहीं कर सकता है। विधाता का चरित्र सचमुच बड़ा विचित्र है / भाग्य का खेल बड़ा अजीब होता है / जो आज सुबह जागते समय राजा था, बहुत बड़े राज्य का मालिक था, लाखों-करोडों लोगों पर जिसका हुकम चलता था और जिसके लिए सभी प्रकार के सुखोपभोग निरंतर उपलब्ध होते थे, वह जागने के कुछ समय बाद एक क्षण में राजा से मुर्गा बन गया, मनुष्य से पंछी हो गया। मनुष्य के कपाल पर लिखे हुए विधाता के लेख को पोंछ डालने का सार्मथ्य किसमें है ? चंद्र और सूर्य को भी अहों की पीड़ा सहनी ही पड़ती है। बहुत बडे-बडे बुद्धिमानों को भी दरिद्रता का दु:ख भोगना पड़ता है। संसार में रहनेवाले जीवों के सुख-दुःख में उनके किए हुए शुभाशुभ कर्म ही कारण रुप होते है। अन्य बातें तो सिर्फ निमित्त बनती हैं। वीरमती के चले जाने के बाद, अपने पति के प्रति अत्याधीक स्नेहवश, मुर्गे के रूप में बदले हुए अपने पति राजा चंद्र को अपनी गोद में लेकर गुणावली उसे आँसुओं की धारा से नहलाने लगी और उसकी पीठ पर प्रेम से हाथ फेरते हुए बोली, "हे प्राणनाथ ! यह क्या हो गया ? पाप के जिस मस्तक पर अभी-अभी मूल्यवान् रत्नजडित राजमुकुट शोभित होता था, . उसी मस्तक पर इस समय लाल रंग का तुर्रा दिखाई दे रहा है / अभी तक प्रतिदिन सुबह आपको मंगलपाठको के मधु स्वर निद्रा से जगाते थे, लेकिन अब आपके 'कुक्कडकु' शब्दों को सुनकर नगरजन निद्रा से जागेंगे। जो रत्नमय झूलों पर बैठ कर झूलने का सुख अनुभव करता / था, उसे अब लोहे के पिजड़ में हिलने-डुलने में सुख मानना पड़ेगा। क्या-से-क्या हो गए आप, हे प्राणनाथ / " इस प्रकार पति के पूर्व जीवन की सुख-साहिबी को याद करते हुए गुणावली ' शोक करती जा रही थी। अपने दैव को कोसते हुए गुणावली कह रही थी, “हे देव ! तूने अचानक यह सब क्या कर डाला ? इस प्रकार अचानक तूने मेरा और मेरे पति का सुख क्यों छीन लिया ? हमने तेरा | ऐसा कौन सा अपराध किया था, जो तूने हमें ऐसी निराधार स्थिति में डाल दिया ? दु:ख के सागर में तूने हमें इस तरह क्यों फेंक दिया ? क्या तुझे हमारी जरा भी दया नहीं आई ? लगता / है कि तू भी बड़ा निर्दय है, क्यों कि तूभी बीना सोचे-समझे सज्जनों को भी संकटों के समुद्र में फेंक देता है।" P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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