________________ को चन्द्रराजर्षि चरित्र 87 - अपने पति को नाराज हुआ जान कर गुणावली समय मिलते ही शीघ्र अपनी सास रमता के पास जा पहुँची और उसने पति को जगाने की कोशिश करने के बाद जो कुछ भी टेत हुआ था, उन सबकी विस्तृत रिपोर्ट अपनी सास को दे दी। गुणावली को कही हुई बातें नते ही वीरमती क्रोधावेश से काँप उठी। गुणावली ने वीरमती से कहा, "हे पूज्य माताजी. ऐसा लगता है कि आपकी विद्या से भी इकर बलवान् विद्या मेरे पति के पास है / मैंने तो आप से पहले भी कहा था कि उन्हें ठगना हुत कठिन है / जो इतने बड़े राज्य का बोझ वहन करता है और संग्राम में शत्रु के वज्र जैसे हार भी सहन करता है, क्या ऐसा धीर-वीर पुरुष स्त्रियों से धोखा खा सकता है ? मैं तो आपके ग्जाल में फँस कर बहुत बड़ी विपत्ति में पड़ी हूँ। अब मेरी लाज रखना आप ही के हाथ में / कौतुक देखने जा कर मैं अपने प्रिय पति का प्रेम खो बैठी हूँ। 'लेने गई पूत और खो आई सम' जैसी स्थिति हो गई है मेरी। माताजी, मैंने तो जितना हो सकता था, अपनी बचाव करने का प्रयत्न किया। लेकिन न्होंने जो बातें अपनी आँखों से स्वयं देख ली थी, उसके सामने मेरी बातें उनके गले कैसे तरती ? असत्य को छिपाने की लाख कोशिश करने पर भी अंत में असत्य छिपा नहीं रह कता है। असत्य की पोल खुल ही जाती है। आखिर पीतल पीतल होता है और सोना सोना होता है। जल्द या देर से, लेकिन झूठ का रहस्य प्रकट हो ही जाता है। ___माताजी, बताइए, अब मैं क्या करूँ ? मेरे पति के मर्मस्पर्शी वचनों को सुन-सुन कर मेरे दय में जो दु:ख हा है, उसका कोई पार नही है। मुझे ऐसा लग रहा है कि अब मैं या तो उनके मने अपना अपराध स्वीकार कर क्षमायाचना करूं या फिर किसी कुएँ में कूद कर मर Tऊँ। इसके सिवाय मुझे बचने का कोई और उपाय नहीं दिखाई देता है।" गुणावली की बातें सुनते ही वीरमती की आँखें क्रोध से लाल हो गई, उसका खून लने लगा और वह उसी क्षण हाथ में तलवार लेकर चंद्रराजा के पास चली आई। उस समय जा चंद्र स्नान करने के बाद ध्यान करने के लिए अपने पलंग पर आँखें मूंद कर बैठा हुआ था राजा को ध्यानस्थ अवस्था में बैठा हुआ देख कर वाग्मता ने उसे धक्का मार कर पलंग पर रा दिया और वह उसकी छाती पर जा बैठी और क्रोध से तमतमाती हुई बोली, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust