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________________ 86 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र हे नाथ, आप ऐसी बातें कह कर क्यों व्यर्थ ही मेरा दिल दुखा रहे हैं ? मेरे साथ आपकऐसा व्यवहार उचित नहीं लगता है। आप ऐसी व्यर्थ आशंका मत कीजिए, नाथ !" रानी गुणावली से ऐसी लम्बी चौड़ी और बहाने बनानेवाली बातें सुन कर राजा चद्रन रानी से कहा, "अच्छा, तो स्वप्न की बात तुझसे करने से तेरे दिल को दुःख पहुँचा है ? खर. जाने दे यह बात ! लेकिन यह बात तू अवश्य समझ कर रख लें कि मेरा स्वप्न भ्रम नहा है, बल्कि बिलकुल सत्य है / समझी ? सचमुच तुम दोनों सास-बहू की जोड़ी का विघाता ने इस सुंदर रीति से निर्माण किया है कि तुम मुझसे बिना किसी प्रकार का संकोच किए अपनी मर्जी से विहार-विनोद करो, नए-नए स्थान और कौतुक देखो।" इसपर रानी गुणावली ने कहा, "आप इतना अवश्य ध्यान में रखिए कि मैं कोई इधरउधर भटकती रहनेवाली कुलटा नहीं हूँ। इसलिए हे नाथ, मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप हमारा आपस का प्रेम भंग करनेवाली बातें मत बोलिए। इसपर आपकी मर्जी है ! मैं कर भी क्या सकती हूँ अबला नारी !" यह बात कहते-कहते गुणावली ने अपने पति की ओर देखा, तो उसे राजा चंद्र के शरीर पर विवाह के चिन्ह दिखाई दिए। इससे गुणावली को पक्का विश्वास हो गया कि कल रात विमलापुरी में प्रेमलालच्छी राजकुमारी से विवाह करते हुए मैंने जिस वर को देखा था, वह यहा मेरा पति था। मुझे तो उसी समय पक्को आशंका निर्माण हुई थी कि वह वर मेरा पति ही है, लेकिन मेरी सास ने मेरी बात हँसी में उड़ा दी और मुझे ही भला-बुरा सुनाया था। लेकिन अब बिगड़ी हुई बाजी सुधारने के लिए सास की शरण लेने के सिवाय अन्य कोई उपाय नहीं दिखाई देता है / मेरी सासजी ही अब मेरे पति को सबक सिखाएँगी। एक झूठ-एक अपराध-छिपाने के लिए मनुष्य को कितने और झूठ बोलने पड़ते हैं - कितने और अपराध करने पड़ते हैं ? गुणावली के उदाहरण से यह बात कितनी स्पष्ट हो जाता है ! गुणावली सीधी तरह से अपनी भूल स्वीकार कर अपने पति से क्षमा माँग लेती, तो यह =सारी रामायण क्यों खड़ी हो जाती ? लेकिन होनी को रोकने में कौन समर्थ हैं ? भाग्य में जो जैसा लखा हुआ होता है, मनुष्य की वैसी ही बुद्धि हो जाती है, वैसे ही सलाहकार उसे मिलते हैं और वैसे ही संयोग उत्पन्न हो जाते हैं ! P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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