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________________ 80 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र हे नाथ, आपकी बातों से आपका रहस्य मुझ पर अच्छी तरह खुल गया है। इसलिए अब मैं भी देखूगी कि आप मुझे छोड़ कर यहाँ से कैसे जाते हैं / मैं आपके जाने के रास्ते में दीवार बन कर खड़ी रहूँगी। हे प्राणनाथ, मुझे निराश करके जाना आपके लिए बिलकुल उचित नहीं है / मैं तो आजीवन आपकी दासी बन कर रहूँगी और आपकी सेवा करूँगी / हे प्राणाघार ! हे शिरोभूषण ! यदि अनजाने में मुझसे कोई अपराध हुआ हो, तो मुझे क्षमा कीजिए / आप अपने मन की चिंता का कारण मुझे बता दीजिए। आपका उज्जवल मुख चंद्रमा आज म्लान-मलिन क्यों लगता हैं ? हे प्रिय, कहाँ विमलापुरी और कहाँ आभापुरी ? सत्पुण्य के संयोग के कारण ही विधाता ने हम दोनों का संयोग कराया है। आपकी सारी बातें मैं जान चुकी हूँ। इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे साथ कभी कपट व्यवहार मत कीजिए। यदि आप ऐसा व्यवहार करेंगे तो आपकी प्रतिष्ठा को धक्का पहुँचेगा। दूसरी बात, मेरे पिता ने 'करमोचन' विधि के समय आपको मूल्यवान् वस्तुओं का उपहार देने में और आपका अतिथ्य करने में कोई कसर नहीं रखी है फिर भी आपकी उसमें कोई कमी महसूस हुई हो, तो आप मुझे बताइए। में अपने पिता को बता कर आपकी सारी अभिलाषाएँ पूरी करवा दूंगी। लेकिन इस प्रकार बिना किसी कारण के मेरे प्रेम का त्याग कर चले जाना और मेरे साथ हँसींविनोद में अपना मन न लगाना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है। प्रिय, अब इससे अधिक मैं आपसे क्या कहूँ ? लेकिन हे नाथ, एक बात ध्यान में रखिए कि फिर भी यदि आप मेरी प्रार्थना का अनादर कर मुझे छोड़ कर आभापुरी चले जाएँगे, तो मैं आभापुरी खोज निकाले बिना नहीं रहूँगी और अवश्य आभापुरी आ जाऊँगी। मैं वहाँ आपके चरणकमलों की दासी बन कर आजीवन रहूँगी और आपके चरणकमलों की सेवा करने में अपना सारा जीवन व्यतीत कर दूँगी। हे नाथ, यह मेरा अटल और अंतिम निर्णय है।" .4 अपनी प्रिय पत्नी के मुँह से ऐसी प्रेम से सराबोर बातें सुनकर चंद्र राजा ने कहा, “हे प्रिये, तेरे प्रति मेरे मन में संपूर्ण और अखंडित प्रेम का भाव है / यदि मैं आभापुरी में भी बैठा होऊँ तो भी तू मेरे हृदयमंदिर में ही बैठी हुई होगी। मेरे हृदय में तेरे लिए हरदम के लिए स्थान है। यह सब जान कर अब तू मुझे यहाँ से जाने के लिए खुशी से अनुमति दे दे। हे प्रिये, इस समय तू मुझे यहाँ रोक रखने का दुराग्रह मत कर / आज मेरी स्थिति ‘इधर कुआँ उधर खाई' जैसी हो गई है। इस समय तो मेरे लिए यहाँ से चले जाने को छोड़ कर अन्य कोई रास्ता नहीं है। हे प्रिये, मेरे मुँह में ताला लगा हुआ है, मेरे हाथ-पाँव बेडियों से जकडे हुए है / मैं वचन स. . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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