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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 79 वियोग की आशंका निर्माण होती है और फिर जीव की व्यथा का कोई पार नहीं रहता है। प्रिय के संयोग के आनंद की तुलना में प्रिय के वियोग का दु:ख असीम होता है। अज्ञान जीवों ने इष्ट के संयोग में सुख की कल्पना की है। लेकिन यह काल्पनिक सुख का महल कब तक टिक सकेगा ? यह महल तो ताश के पत्तों के महल के समान फूंक मारते ही टूट जाएगा। जो संयोग में सुख मानता है उसे उसके वियोग में दुःख (विलाप) करना ही पड़ता है / यहाँ प्रेमला के मन में भी अपने अत्यंत प्रिय पति के वियोग की आशंका उत्पन्न हुई, इसलिए वह दु:ख से महल के एक कोने में बैठ कर सिसकसिसक कर रोने लगी। उसे अब अपना भावि जीवन अंधकारमय दिखाई देने लगा। चंद्रराजा वहाँ से भाग जाने के लिए महल के दरवाजे तक कई बार गया, लेकिन जैसे भ्रमर सुवासित पुष्प को नहीं छोड़ता है, वैसे ही प्रेमला ने चंद्रराजा का पीछा नहीं छोडा। वह बार-बार पति के पीछे-पीछे जाती थी। प्रेमला को धोखा देकर भाग जाना चंद्रराजा के लिए आसान नहीं था। प्रेमला पति के प्रेम में उन्मत्त-सी हो गई थी। वह चंद्र राजा का हाथ पकड़ कर उसे पलंग के पास खींच कर ले आई। उसने चंद्र राजा को पलंग पर बिठाया और फिर उसके पास बैठ कर कहने लगी, "हे प्राणनाथ ! आप बार-बार ऐसा क्यों कर रहे हैं ? इस घड़ी बाहर जाते हैं तो उस घड़ी अंदर चले आते हैं। इसका आखिर क्या कारण है ? पहली भेंट में ही आप मेरे साथ यह कपटपूर्ण व्यवहार क्यों कर रहे हैं ? आप ऐसा करेंगे तो हमारे बीच होनेवाली प्रेमलता कैसे विकसित होगी ? 'प्रथम ग्रासे मक्षिका पता:' होने से भोजन का सारा मजा किरकिरा हो जाता है, क्या आप यह बात नहीं जानते है ? इसलिए आप सभी प्रकार की चिंता छोड़ कर कृपा करके मेरे पास सुख से बैठिए / मैं आपकी सेवा में कोई कसर नहीं रदूंगी। मैंने तो अपना तन-मनप्राण, सबकुछ आपके चरणों में समर्पित कर दिया है। आप ही मेरे एकमात्र आराध्य देवता हैं। मआपके चरणों की दासी हूँ। मेरे बहुत बड़े पुण्योदय से आपके साथ मेरा संयोग हुआ है। अब मैं आपके चरणकमलों का त्याग कभी नहीं कर सकती हूँ, कभी नहीं कर सकती ! हे नाथ, आप ही मेरी रक्षा करनेवाले ईश्वर है ! मुझे अब सिर्फ आप ही की शरण है। इसलिए मेरा विश्वासघात मत कीजए / हे प्रिय, प्रेम कर के प्रेम का पूर्ण निर्वाह करना ही सत्पुरुष का लक्षण होता है। इसलिए मैं आप से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करती हूँ कि आप इस इष्ट और मधुर संबंध में कटुता मत उत्पन्न कीजिए। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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