________________ 78 श्री चन्द्रराजर्षि चरि= जब प्रेमला इस प्रकार विचार कर रही थी, उसी समय अचानक हिंसक मंत्री वहाँ अ पहुँचे और उन्होंने चंद्रराजा को सांकेतिक भाषा में उस स्थान का त्याग करने को कहा। हिंसक मंत्री का संकेत चंद्र राजा को समझ में तुरन्त आ गया और वह बहुत बड़ी चिंता में पड गया वह सोचने लगा कि एक ओर नवविवाहिता प्रेमला का मेरे प्रति गहरा स्नेह भाव है, दूसरी ओमैं कनकध्वज राजकुमार के लिए शर्त के साथ प्रेमला का पाणिग्रहण कर चुका हूँ और तीसरी ओर यदि वीरमती और गुणावलो मुझसे पहले आम्रवृक्ष पर बैठकर विमलापुरी पहुँच गई, ते मेरी क्या स्थिति होगी ? इन तीन बातों से चंद्रराजा का चित्त चिंता की उलझन में फँसा हुआ था। फिर भी, झठ से अपने मन में निर्णय कर, जैसे साँप अपनी केंचुली का त्याग कर चल जाता है, वैसे ही चंद्रराजाप्रेमला के प्रेम का त्याग कर वहाँ से जल्द उठ खड़ा हुआ। वह वह से चला ही जानेवाला था कि चंट और सावधान प्रेमला ने तुरन्त उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, “हे नाथ, मुझे छोड़ कर आप कहाँ चल निकले हैं ?" ___ चंद्रराजा ने इसपर बनावटी उत्तर दिया, “मैं मलविसर्जन के लिए जाकर अभी लौट आता हूँ।" मलविसर्जन की बात सुन कर प्रेमला हाथ में पानी का कलश लेकर पति के साथ जाने को तैयार हो गई। चंद्रराजा ने उसे बार-बार लौट जाने को कहा, लेकिन शंकाशील बन प्रेमला वापस नहीं गई। अंत में चंद्रराजा को तुरन्त लौट आना पड़ा। ___ महामंत्री हिंसक फिर से वहाँ आया। उसने इस युक्ति से चंद्रराजा को संकेत किया - 'हे रात्रिनृप ! चंद्र ! पक्षे-हे निशाटन अर्थात् यहाँ से चले जाने की जल्दी करो। यदि तुम्हें सूर्य ने देखा तो तुम्हारा स्वरूप प्रकट हो जाएगा। चंद्रराजा हिंसक मंत्री का संकेत तो जान गया लेकिन वह कर ही क्या सकता था - प्रेमला की चतुराई के सामने उसका भाग जाने का कोई उपाय सफल सिद्ध नहीं हो रहा था। चंद्र राजा अनेक बार महल के दरवाजे से बाहर आने की कोशिश करता था और हर बार प्रेमल पति का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ महल में ले आती थी। चंद्रराजा के बर्ताव से प्रेमला अच्छी तरह समझ गई कि ये मेरे पति मुझे छोड़ कर कह भाग जाना चाहते हैं। लेकिन उसने निश्चित किया कि मैं अपने पति को जाने नहीं दूंगी, में उन्ह अपने बाहुपास में जकड़ कर रखूगी। हाथ में आए हुए चिंतामणि को कैसे जाने दूं? इस ससा में पुण्य के बलपर ही प्रिय का संयोग प्राप्त होता है। बाद में फिर पाप के उदय से प्रियता SIELITEEEEEEEE: P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust