________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र मागा। निकट हो शीतल पानी से भरा हुआ सुवर्ण का घड़ा पड़ा था। उसमें से पानी लेकर प्रेमला ने बड़े प्रेम से पति की पिलाया। पानी पीते-पीते चंद्र राजा ने प्रेमला से कहा, “हे प्रिये, क्या तूने कभी गंगा का पानी पिया है ? गंगा के पानी की तुलना में मुझे वह पानी फीका स्वादरहित लगता है।" पति की बात सुनकर प्रेमला फिर एक बार विचारसागर में डूब गई। वह सोचने लगी, सिंहलपुरी तो सिंधु नदी के किनारे पर स्थित हैं और गंगा नदी तो पूर्व दिशा में आती है। फिर मेरे पति गंगा का और गंगा के पानी का वर्णन कैसे कर रहे है ? उनकी बातों में अवश्य ही कोईन-कोई रहस्य छिपा हुआ है। इसलिए प्रेमला ने पति के हृदय का भाव जानने के उद्देश्य से आखें उठा कर पति की ओर देखा। पति के मुख पर दिखाई देनेवाले भावों को समझ कर प्रेमला को लगा कि पति का चित्त अत्यंत चिंता में डूबा हुआ है। यह देख कर प्रेमला फिर से चिंता में डूब गई / वह पति के चित्त की चिंता जानने के लिए फिर से कुछ पूछना ही चाहती थी कि सिंहलनरेश अचानक वहाँ आ धमके। उन्होंने चंद्रराजा को एकान्त में बुलाया और कहा, “हे महाश्य, अब रात बहुत थोड़ी बाकी है। रात का अंतिम प्रहर चल रहा है। मैं यह जानता हूँ कि इस स्थान का त्याग करना आपको प्रिय नहीं लग रहा है। लेकिन दूसरा कोई उपाय ही नहीं है / इसलिए अब आप यहाँ से जल्दी चलेंगे, तो अच्छा होगा।" इस समय सिंहलनरेश का वर्ताव स्वार्थ पूरा होने पर वैद्य क्यों न मर जाए, जैसा था। सिंहलनरेश की कही हुई बात चंद्रराजा को अत्यंत अरुचिकर लगी। लेकिन पहले से ही शर्त से बँधे हुए चंद्रराजा को यहाँ से अपनी प्रिय विवाहिता पत्नी को छोड़कर जाने के सिवाय मुक्ति का कोई उपाय भी दिखाई नहीं दे रहा था। - बुद्धिमान् चंद्रराज सिंहलनरेश के किए हुए छोटे-से इशारे से सबकुछ समझ गया / इसलिए उसने तुरन्त विलासभवन का त्याग किया और वह बाहर पहले ही तैयार रखे गए रथ में अपनी पत्नी प्रेमला के साथ बैठकर चल निकला। उसने अपना निवासस्थान बदल दिया। दोनों रथ में बैठकर उसी स्थान पर आ पहुँचे जहाँ बराती लोग ठहरे हुए थे। वहाँ महल में एकान्तस्थान में दोनों आ पहुँचे और प्रेम से साथ-साथ बैठे / प्रेमला ने देखा कि पति का मन उदास है। - प्रेमला ने यह अनुभव किया कि मेरा पाणिग्रहण करते समय पति को जितना उल्लास था उतना मेरे साथ पाँसों का खेल खेलते समय नहीं था। अब तो पाँसों के खेल के समय था, उतना भी उल्लास दिखाई नहीं पड़ता है। प्रतिक्षण उनके मन का उल्लास घटता जा रहा है। Jun Gun Aaradnak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.