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________________ 81 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र बंधा हुआ हूँ और तू तो जानती ही है कि क्षत्रिय के लिए “प्राण जाए पर वचन न जाए, इस परंपरा का पालन करना कैसा महत्त्वपूर्ण होता है / हे प्रिये, तू चतुर है, समझदार है। समझदारों के लिए इशारा काफी होता है। तू मुझे अब यहां से जाने दे।" जब इस प्रकार से चंद्र राजा और प्रेमला के बीच वार्तालाप चल रहा था, तभी वहाँ झुंझलाया हुआ दुष्ट हिंसक मंत्री अपशब्द बकता हुआ घमका . हिंसक मंत्री को अचानक आया हुआ देख कर प्रेमला शरमा गई और एक ओर जाकर खड़ी हो गई। उसी समय हिंसक मंत्री ने चंद्रराजा को संकेत से बाहर बुला लिया। चंद्रराजा ने भी सारी परिस्थिति अच्छी तरह जान ली और वह वहाँ से निकल कर सिंहलनरेश के पास चला गया और उसने सिंहलनरेश से आभापुरी लौट जाने को अनुमति माँगी। उसने नरेश से कहा, "हे राजन्, मैंने आपकी इच्छा के अनुसार और आपका बताया हुआ सारा काम कर दिया हैं / अब मैं अपनी नगरी लौट जाता हूँ। मैं नवविवाहिता प्रेमला को रोती हुई छोड़ कर चला आया हूँ। अब उसकी लाज रखना आपके ही हाथ में है। जैसे मैंने आपकी लाज रखी, वैसे ही आप भी प्रेमला को लाज रखिए।" ऐसी विनती भरी सिफारिश कर के चंद्र राजा वहाँ से तुरन्त चल निकला और उद्यान में वीरमती ने आम्रवृक्ष को जहाँ खड़ा रखा था, वहाँ जा पहुँचा। इधर-उधर देख कर वह तुरन्त आम्रवृक्ष के . कोटर में छिप गया। रात लगभग बीतने को थी, इसलिए वीरमती और गुणावली भी चंद्रराजा के वृक्ष के कोटर में छिप जाने के कुछ ही क्षण बाद आम्रवृक्ष के पास आ पहुँची। सास-बहू दोनों तुरन्त वृक्ष को डाली पर चढ़ कर बैठ गई। वीरमती ने पहले को तरह कनेर की छड़ी से तीन बार वृक्ष पर प्रहार किया। क्षण में ही वह आम्रवृक्ष उन तीनों को लेकर किसी राकेट को तरह आभापुरी की ओर आकाश मार्ग से चल निकला। सौभाग्य से इस बार भी सास-बहू में से किसी की भी द्दष्टि .. चंद्रराजा पर नहीं पडी। ... आकाशमार्ग से जाते-जाते रास्ते से वीरमती ने गुणावली से कहा। "प्रिय बहू, यदि तू मेरे कहने के अनुसार मेरे साथ न आती तो क्या तुझे यह विमलापुरी, वह कनकध्वज राजकुमार और ऐसा भव्य विवाह समारोह देखने को मिलता ? अब मैं ही तुझे प्रतिदिन नए-नए कौतुक दिखा कर तेरी अभिलाषा पूरी कर दूँगी। लेकिन इसके लिए तुझे भी मेरे साथ प्रेम का भाव निभाना पड़ेगा और मेरे कहने के अनुसार बर्ताव करना पड़ेगा। बहू, मेरे सिवाय इस संसार में ऐसी सामर्थ्य किसके पास हैं कि अल्प समय में तुझे इतनी दूरी पर ले आए और फिर लौटा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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